Bihar latest news in hindi: बिहार में उद्योग-धंधे खस्ताहाल, कैसे रूकें प्रवासी कामगार

By | June 19, 2021
Bihar latest news in hindi

Bihar latest news in hindi: बिहार में उद्योग-धंधे खस्ताहाल, कैसे रूकें प्रवासी कामगार

Bihar latest news in hindi: कोरोना की दूसरी लहर में बिहार लौटे कामगार फिर उन शहरों का रुख करने लगे हैं, जहां वे काम कर रहे थे. प्रदेश में बाढ़ की दस्तक ने उनकी समस्या को और गंभीर बना दिया है. राज्य के उद्योग उन्हें रोजगार देने की हालत में नहीं हैं.

भले ही राज्य सरकार दावे कर रही है कि दो जून की रोटी के लिए किसी को बाहर जाने की जरूरत नहीं है, किंतु हकीकत सरकारी दावों के बिल्कुल उलट है. नए उद्योग-धंधे लगे नहीं हैं, पुराने की स्थिति खस्ताहाल हो चुकी है. सरकारी योजनाओं के सहारे सीमित संख्या में ही रोजगार सृजन संभव हो पा रहा है. नतीजन प्रवासी कामगार रोजगार के लिए बेहाल हैं. देशभर में कोरोना की दूसरी लहर के थमते ही एकबार फिर खासकर उत्तरी व पूर्वी बिहार तथा कोसी व सीमांचल के इलाके से कामगारों का पलायन तेज हो गया है. मनरेगा जैसी सरकारी योजनाएं या फिर सरकारी निर्माण कार्यों में कुशल या अर्द्ध कुशल कामगारों को पर्याप्त संख्या में काम नहीं मिल पा रहा है.

कुछ हद तक सरकार की वित्तीय सहायता से कुछ कुशल कामगारों ने अपना काम अवश्य ही शुरू किया है. दरअसल, स्थिति में तब तक सुधार नहीं आएगा जबतक प्रदेश में नए उद्योग-धंधे नहीं खुलेंगे. सरकारें बदलतीं रहीं, उद्योगों की स्थिति में सुधार के दावे किए जाते रहे, किंतु यथार्थ में जो उद्योग पहले से यहां थे उनकी भी स्थिति दिन-प्रतिदिन खस्ताहाल होती गई और अंतत: वे बंदी की कगार पर पहुंच गए. जबकि यहां लघु, मध्यम व बड़े उद्योगों के लिए अपार संभावनाएं हैं, लेकिन इस क्षेत्र में अपेक्षित प्रगति नहीं हो सकी.

बेहतर अतीत रहा है उद्योग-धंधों का

अविभाजित बिहार में चीनी, जूट, पेपर, सूत व सिल्क उद्योग का गौरवशाली अतीत रहा है. राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह के समय में बिहार देश की दूसरी सबसे बेहतर अर्थव्यवस्था वाला राज्य था. बरौनी रिफाइनरी, सिंदरी व बरौनी उर्वरक कारखाना, बोकारो स्टील प्लांट, बरौनी डेयरी, भारी इंजीनियरिंग उद्योग (एचईसी), हटिया (रांची) उन दिनों ही स्थापित हुआ था. किंतु, सरकार की गलत नीतियों व इच्छाशक्ति में कमी की वजह से ये कल-कारखाने धीरे-धीरे बंद होते गए. इसी के साथ रोजगार की समस्या भी विकराल होती चली गई. एक समय था जब देश में 40 प्रतिशत चीनी का उत्पादन बिहार में होता था.

दरभंगा की सकरी, लोहट व रैयाम चीनी मिल, पूर्णिया की बनमनखी चीनी मिल, सिवान की एसकेजी शुगर मिल, समस्तीपुर की हसनपुर चीनी मिल, मुजफ्फरपुर की मोतीपुर चीनी मिल, पूर्वी चंपारण की लौरिया, नवादा की वारसिलीगंज, गोपालगंज की हथुआ व वैशाली की गोरौल व गया की गुरारू चीनी मिल जैसी कई अन्य ऐसी चीनी मिलें थीं, जो एक-एक बंद हो गईं.

बिहार सरकार ने 1977 से 1985 के बीच चीनी मिलों का अधिग्रहण किया, किंतु 1998 के बाद स्थिति बिगड़ती ही चली गई. बिहार में बंद होने वाली सबसे पहली चीनी मिल दरभंगा की सकरी चीनी मिल थी. 2005 में बिहार स्टेट शुगर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन को राज्य की सभी चीनी मिलों के जीर्णोद्धार का काम मिला. कॉरपोरेशन की सिफारिश पर इथेनॉल के उत्पादन को ध्यान में रखते हुए कई मिलों को प्राइवेट हाथों में सौंपा गया. निवेशकों की भी रूचि चीनी मिल को चलाने में कम इथेनॉल के उत्पादन में ज्यादा थी. राज्य में 28 दिसंबर, 2007 के पहले गन्ने के रस से सीधे इथेनॉल बनाने की अनुमति थी.

राज्य सरकार ने केंद्र से पुन: इसकी इजाजत मांगी, किंतु केंद्र सरकार ने राज्य की मांग को खारिज कर दिया. अंतत:, ये मिलें कबाड़ में तब्दील हो गईं. आखिरकार, 2006 में बिहार सरकार ने भी मान लिया कि बंद पड़ी चीनी मिलों को चलाना अब मुश्किल है.

मिलों के बंद होने का असर खेती पर

मिल बंद हो गए तो इन इलाकों में गन्ना आधारित कृषि की अर्थव्यवस्था भी चौपट हो गई. इन मिलों की स्थापना के लिए किसानों द्वारा दी गई जमीन भी उनके हाथ से निकल गई. उनके पास न तो रोजगार रहा, न ही जमीन रही. इसी तरह सीमांचल के कटिहार, अररिया व पूर्णिया में जूट मिलें हुआ करती थीं, किंतु ये सभी धीरे-धीरे स्थानीय समस्याओं व राजनीति की भेंट चढ़ गए. जूट कैपिटल के रूप में विख्यात कटिहार में एक नेशनल जूट मैन्युफैक्चरिंग कॉरपोरेशन नामक मिल थी जो 2008 में बंद कर दी गई, वहीं सनबायो मैन्युफैक्चरिंग लिमिटेड नामक दूसरी मिल भी काफी बुरी हालत में है.

अकेले समस्तीपुर जिले के मुक्तापुर में 80 एकड़ में स्थित 125 करोड़ रुपये के टर्नओवर वाली रामेश्वर जूट मिल के करीब चार साल पहले बंद होने से 4200 कर्मचारी तो बेरोजगार हो ही गए, इनके साथ ही उन हजारों जूट उत्पादक किसानों को भी झटका लगा जो इस मिल को अपना जूट बेचते थे.

सीमांचल के इलाके में अगर सरकार गंभीरता से प्रयास करती थी तो यह इलाका फिर से जूट उत्पादन का बड़ा केंद्र बन सकता था. सोन नदी के किनारे बसा रोहतास जिले का डालमियानगर एक जमाने में राज्य का औद्योगिक हब माना जाता था जहां सीमेंट, कागज व वनस्पति के कारखाने थे. लाखों लोगों को प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर से इन फैक्ट्रियों से रोजगार मिलता था.

सिल्क सिटी के नाम से मशहूर भागलुर में रेशम तथा हैंडलूम के हजारों केंद्र थे जिनसे लाखों बुनकरों का जीवन-यापन होता था, किंतु बिजली की अनुपलब्धता, बिगड़ी कानून व्यवस्था व गलत सरकारी नीतियों की वजह से इस उद्योग का बंटाधार हो गया.

हालांकि समय के साथ बाजार में चाइनीज सिल्क के प्रवेश ने भी इसकी बर्बादी में महती भूमिका निभाई. अपनी बेहतरीन क्वालिटी के लिए प्रख्यात दरभंगा जिले के हायाघाट में स्थित अशोक पेपर मिल भी वर्ष 2003 से ही बंद है. 400 एकड़ जमीन में फैला यह पेपर मिल आज जंगल में तब्दील होने की स्थिति में है. 1958 में दरभंगा महाराज द्वारा शुरू की गई इस मिल को किसानों ने भी अपनी जमीन दी थी.

सरकारी सिस्टम भी लापरवाह

पत्रकार अंशुमान पांडेय कहते हैं, “पुराने उद्योगों के बंद होने तथा नए निवेशकों के नहीं आने के कारणों पर विचार करने पर एक बात तो साफ है कि कहीं न कहीं लालफीताशाही इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार है. मामूली काम के लिए परेशान होना पड़ता है. सही मायने में सिंगल विंडो सिस्टम काम नहीं करता है. यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यहां का सिस्टम ही नए निवेशकों के आने में बड़ी रूकावट है.” शायद यही वजह है कि 2005 में सरकार गठन के बाद राज्य में वर्ष 2016 में औद्योगिक प्रोत्साहन नीति बनाई गई.

वहीं एक बड़ी कंपनी के प्रतिनिधि नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर कहते हैं, “अमूमन तो कागजी कार्रवाई में ही बहुत समय निकल जाता है. अगर आपको जमीन मिल जाएगी तो कब्जा लटक जाएगा. चलिए, कब्जा भी हो गया तो बैंक लोन नहीं देने के लिए हरसंभव हथकंडा अपनाता है. यह भी किसी तरह हो गया तो सरकारी लाइसेंस के लिए चप्पल घिसने पड़ते हैं.”

शायद इन्हीं वजहों से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी 2020 में एक चुनावी सभा में कहा कि जो राज्य समुद्र के किनारे हैं, वहीं बड़े उद्योग लग पाते हैं. यह सही है कि चारों ओर से जमीन से घिरा होने के कारण बिहार को समुद्री लॉजिस्टिक का लाभ नहीं मिलता, लेकिन बिहार ने भी मालवहन को आसान बनाने के लिए रेल और सड़क मार्ग की सुविधाओं का पर्याप्त इस्तेमाल नहीं किया है.

इसलिए मुख्यमंत्री के इस बयान की काफी आलोचना भी हुई. राज्य के पहले मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह के कार्यकाल से तुलना करते हुए आलोचकों ने कहा कि उनके समय में भी तो बिहार समुद्र से नहीं घिरा था और दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश जैसे राज्य भी समुद्र से नहीं घिरे हैं, फिर भी बिहार के लाखों कामगार तो हर साल रोजी-रोटी के लिए इन्हीं राज्यों में पलायन करते हैं.

हर हाल में निवेशकों को लाने की कोशिश

नीतीश सरकार ने 2005 में अस्तित्व में आने के बाद राज्य के औद्योगिक हालात को सुधारने की दिशा में गंभीर प्रयास किए. देशभर से निवेशकों को आकृष्ट करने की कोशिश की गई. कोरोना महामारी के दौरान सरकार ने स्किल मैपिंग जैसी व्यवस्था से कुशल, अर्द्धकुशल या अकुशल कामगारों के पहचान की कोशिश की ताकि उन्हें उनकी योग्यता के अनुसार काम मिल सके.

स्किल मैपिंग के बाद कामगारों को दक्षता प्रमाण पत्र दिया जाएगा. बेतिया के चनपटिया मॉडल की तर्ज पर जिलों में स्वरोजगार मुहैया कराने के लिए स्टार्टअप जोन भी बनाए गए हैं. उन्हें स्वरोजगार के लिए वित्तीय सहायता देने का निर्णय लिया गया. राज्य के श्रम संसाधन मंत्री जीवेश कुमार कहते हैं, “सरकार 20 लाख लोगों को रोजगार मुहैया कराने की दिशा में काम कर रही है. सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की स्थापना कर एडवांस टेक्नोलॉजी की मदद से इंडस्ट्री के लिए कुशल युवा तैयार किए जाने की तैयारी है.”

केंद्र प्रायोजित प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना, जल जीवन मिशन, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसी योजनाओं से भी रोजगार के अवसर पैदा करने की कोशिश की गई है. सरकार ने प्रवासी श्रमिकों की सहायता के लिए टोल फ्री नंबर भी जारी किया. राज्य सरकार ने मनरेगा के तहत मिलने वाली मजदूरी को कम से कम 300 रुपया करने के लिए केंद्र को पत्र भी लिखा है.

अभी इसके तहत एक दिन की मजदूरी के तौर महज 198 रुपये दिए जाते हैं. सरकार का मानना है कि इस योजना के प्रति मजदूरों की बेरुखी का यह एक बड़ा कारण है.  राज्य सरकार ने औद्योगिक प्रोत्साहन नीति, 2016 में संशोधन भी किया और इसके साथ ही राज्य में निवेश के लिए कई तरह के ऑफर भी दिए. नई नीति में कई तरह के उद्योगों को सामान्य सूची से हटाकर प्राथमिकता की सूची में दर्ज किया गया.

उद्योग में निवेश बढ़ाने की पहल

जिन उद्योगों में मैनपॉवर को प्राथमिकता दी गई थी, दूसरे राज्य से उनके बिहार स्थानांतरण के लिए सरकार ने कई तरह की सहूलियतों का भी एलान किया. जिन्हें प्रदेश में 31 मार्च, 2025 तक लागू रखा जाएगा. हरेक जिले में कम से कम दो औद्योगिक कलस्टर बनाने का निर्णय लिया गया. बिहार के उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन कहते हैं, “राज्य में अभी तक दस हजार करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव मिल चुके हैं.

जिनमें छह हजार करोड़ से अधिक के प्रस्ताव इथेनॉल सेक्टर से जुड़े हैं.” उद्योगों की स्थापना के लिए जरूरी कई तरह के लाइसेंसों में होने वाली देरी को समाप्त करने की दिशा में पहल करते हुए कई लाइसेंसों को ऑटो मोड में देने की व्यवस्था की गई है. ऐसे लाइसेंस श्रम संसाधन, ऊर्जा, पर्यावरण व वन विभाग, खान-भूतत्व, प्रदूषण, नगर निगम व लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग द्वारा जारी किए जाते हैं.

केंद्र सरकार ने भी मुजफ्फरपुर के मोतीपुर में मेगा फूड पार्क स्थापित किए जाने को मंजूरी दे दी है. इससे किसान, खाद्य प्रसंस्करण यूनिटें तथा खुदरा विक्रेताओं को एक प्लेटफार्म मिल सकेगा. देश के 42 मेगा फूड पार्क में यह एक होगा, जिसमें 30 औद्योगिक इकाइयां लगाई जाएंगी. सरकार का मानना है कि अगर ये इकाइयां स्थापित होती हैं तो राज्य में तीन सौ करोड़ रुपये का अतिरिक्त निवेश होगा. राज्य में इथेनॉल उत्पादन का रास्ता साफ होने पर उम्मीद की जाती है कि इससे गन्ने का उत्पादन तो बढ़ेगा ही, किसानों को भी उनकी उपज का बेहतर मूल्य मिलेगा.

साथ ही बड़े पैमाने पर निवेशकों के आने से रोजगार का भी बड़े पैमाने पर सृजन हो सकेगा. अगर सरकार सही मायने में परिदृश्य बदलना चाहती है तो दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ इज ऑफ डूइंग बिजनेस को प्रभावशाली बनाना होगा, ताकि निवेश के लिए बिहार आने वाले उद्योगपतियों को प्रोत्साहन मिल सके. तभी बिहार के माथे से मजदूरों के पलायन का कलंक भी मिटेगा.

 

‘बाबा का ढाबा’ के मालिक कांता प्रसाद ने की सुसाइड की कोशिश

 

 दुनिया की वो जगहें जहां होती है सबसे ज्यादा बारिश

 

40 लाख साल में सबसे अधिक स्तर पर पहुंचा वायुमंडल में CO2 का स्तर

 

इस द्वीप में समुद्री घास से बने घर

 

कोरोना वैक्सीन से शरीर के ‘चुंबक’ बनने का दावा, क्या हो सकता है ऐसा?

 

तूफान से पहले और बाद में क्या करना है बहुत जरूरी, जानिए वो बातें

भविष्य में हवा में सांस लेंगे सैटेलाइट, जानिए क्या होंगे उनके फायदे नुकसान

मंगल में मिल गयी ऑक्सीजन

Two World twokog.com के सोशल मीडिया चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ

क्लिक करिये –

फ़ेसबुक

ट्विटर

इंस्टाग्राम

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *