By | May 14, 2022
KL Rahul

केएल राहुल ने अपने आईपीएल करियर की शुरुआत 2013 में अपने ही शहर की टीम रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर से की थी. हालांकि अगले ही साल वो सनराइज़र्स हैदराबाद चले गए. वहां दो साल रहने के बावजूद राहुल कुछ ख़ास नहीं कर पाए.

जब वो वापस फिर से 2016 में बैंगलोर में लौटे तब उन्होंने दिखाया कि वो भविष्य के स्टार भी बन सकते हैं. उस सीज़न में राहुल अपनी टीम के लिए सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले टॉप तीन खिलाड़ियों में शुमार थे. इसके बावजूद 2018 सीज़न के लिए बैंगलोर ने उन्हें रिटेन नहीं किया.

इस बात के कयास लगाए गए थे कि कप्तान कोहली को राहुल की बल्लेबाज़ी शैली टी20 की मार-धाड़ वाली शैली के अनुरूप नहीं जंची. इस बात का ज़िक्र ख़ुद कोहली ने इस साल एक पॉडकास्ट में किया.

कोहली ने माना कि राहुल ने अपनी बल्लेबाज़ी में ज़बरदस्त तरीके का बदलाव लाया है, जिसकी उम्मीद शुरुआत में उन्हें नहीं दिखी थी.

2018 के बाद से अलग अंदाज़ में हैं राहुल

लेकिन, 2018 में जब से राहुल ने पंजाब के लिए खेलना शुरू किया तो उसके बाद से ही वो एक अलग ही अंदाज़ में दिखने लगे हैं. अगले 4 साल तक राहुल ने हर बार अपनी टीम के लिए 500 से ज़्यादा रन बनाए. ऐसा कमाल एक दौर में सिर्फ़ सुरेश रैना ही अपने पराक्रम के दौर में चेन्नई सुपर किंग्स के लिए कर पाए थे.

जिस राहुल ने आईपीएल के छठे साल से ही खेलना शुरू किया, वो आज इस टूर्नामेंट के इतिहास में सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले टॉप 15 खिलाड़ियों में शामिल हो चुके हैं. इस साल भी राहुल से ज़्यादा रन सिर्फ़ इंग्लैंड और राजस्थान रॉयल्स के जोस बटलर ने बनाए हैं.

अगर राहुल हर सीज़न-500 रन वाला फॉर्म अगले साल भी बरकरार रखने में कामयाब होते हैं, तो जल्द ही वो गौतम गंभीर, अंबाती रायडू, शेन वॉटसन और अंजिक्य रहाणे को पछाड़ते हुए सर्वकालिक टॉप 10 में भी शामिल हो सकते हैं.

सिर्फ एक दशक तक आईपीएल में खेलने के बाद टॉप 10 की फ़ेहरिस्त में शामिल होना, किसी भी युवा खिलाड़ी के लिए किसी सपने के सच होने से कम नहीं हो सकता.

लेकिन, राहुल के सपने छोटे नहीं हैं. जिस खिलाड़ी के पिता ने उनका नाम ही एक महान खिलाड़ी (द्रविड़) के सम्मान में रख दिया, तो समझ सकते हैं कि कैसे उम्मीदों के दबाव से निपटना इस बल्लेबाज़ को ख़ूब आता है.

टीम इंडिया के भविष्य के कप्तान

राहुल से उम्मीद की जा रही है कि वो भविष्य में टीम इंडिया के लिए तीनों फॉर्मेट के कप्तान होंगे. इसलिए इस साल के शुरुआत में जब कोहली साउथ अफ्रीका के लिए दूसरे टेस्ट मैच में कप्तानी नहीं कर पाए तो अचानक ही ये ज़िम्मेदारी केएल राहुल को मिली.

KL-Rahul

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राहुल ने उस मैच में अपनी कप्तानी से हालांकि सबको बहुत ज़्यादा प्रभावित तो नहीं किया, लेकिन लखनऊ सुपरजाएंट्स के मालिक संजीव गोयनका और टीम इंडिया के पूर्व ओपनर गौतम गंभीर को राहुल की लीडरशीप योग्यता पर भरोसा था. यही वजह है कि उन्हें कप्तानी दी गयी और गुजरात टाइटंस के बाद प्लेऑफ़ के लिए क्वालिफाई करने वाली लखनऊ दूसरी टीम बन गयी.

अब भला ये किसने सोचा होगा कि पंजाब के लिए दो साल तक कप्तान के तौर पर जूझने वाले राहुल अचानक ही पहले सीज़न में ही लखनऊ को प्लेऑफ में ले जाएंगे और अब तो ये मुमकिन है कि वो चैंपियनशिप भी दिला दें.

लेकिन, ये सब यूं ही नहीं हुआ. राहुल को जब कप्तानी मिली तो इस साल की नीलामी में उनकी क्रिकेट सोच देखने को मिली. राहुल हर हाल में क्विंटन डि कॉक को विकेटकीपर बल्लेबाज़ के तौर पर शामिल करना चाहते थे और किया भी. इसका फायदा उन्हें इस सीज़न में मिला.

ऐसा माना जाता है कि राहुल ने टीम मैनेजमेंट से गुज़ारिश की थी कि चयन के दौरान ज़ोर ऑलराउंडर पर रहे. भारतीय या विदेशी कोई भी चलेगा. राहुल को ऑलराउंडर के अतीत की साख की परवाह भी नहीं थी, वरना एक साथ क्रुणाल पंड्या, दीपक हुडा, कृष्णप्पा गौतम और जेसन होल्डर को कोई टीम शामिल नहीं करती.

इतना ही नहीं राहुल ने मेंटोर गंभीर और कोच एंडी फ्लावर को ये कहने में हिचकिचाहट नहीं दिखाई कि उन्हें भारतीय पिचों के लिए भी एक्सप्रेस तेज़ गेंदबाज़ चाहिए. इसलिए आवेश ख़ान, दुश्मंत चमीरा और मार्क वुड पर टीम ने मुंहबोली क़ीमत लगाई. इंग्लैंड के वुड अनफिट होने के चलते इस साल नहीं खेल पाए, लेकिन ख़ान और चमीरा को लेग स्पिनर रवि बिश्नोई का साथ मिलने से टीम की समस्या हल हुई है.

टीम स्टाफ़ का अहम योगदान

कप्तान राहुल के साथ साथ सुपरजाएंट्स की कामयाबी की एक अहम वजह कोचिंग स्टाफ़ में विजय दहिया और ज़िंबाब्वे के पूर्व कप्तान और इंग्लैंड के पूर्व कोच फ्लावर का होना भी अहम रहा है. ये दोनों लो-प्रोफ़ाइल कोच हैं और पर्दे के पीछे बख़ूबी ढंग से काम करते हुए कप्तान और टीम का भार कम करते हैं.

दहिया जो दो दशक से भी ज़्यादा समय तक गंभीर के साथ जुड़े रहे हैं और जो कोलकाता नाइट राइडर्स जैसी चैंपियन टीम का दो बार हिस्सा रहे हैं, उन्होंने भी काफ़ी होमवर्क किया है. आयूष बदोनी और मोहसिन ख़ान जैसे युवाओं को खोजने में और टीम में लाकर निखारने में दहिया ने अहम किरदार निभाया है.

बावजूद इसके अगर ये टीम फ़ाइनल में नहीं पहुंचती है और ट्रॉफी नहीं जीत पाती है, तो राहुल को निजी तौर पर काफ़ी मायूसी हो सकती है. क्योंकि मालिक गोयनका ने तो 2017 में पुणे सुपरजाएंट्स को आईपीएल ट्रॉफ़ी को लगभग जीतते देख लिया था. राहुल और लखनऊ के लिए चुनौतियों का दौर अब शुरू होता है.

फ़िलहाल सबसे कामयाब 10 बल्लेबाज़ों में तो राहुल, क्विंटन डि कॉक और हुडा हैं. हालांकि टॉप 10 के बाद की जो फ़ेहरिस्त शुरू होती है, वहां से टॉप 45 तक लखनऊ का कोई बल्लेबाज़ नहीं है.

ये साफ़ दिखाता है कि इन तीनों के अलावा बाक़ी बल्लेबाज़ों ने निराश ही किया है और टूर्नामेंट के बिज़नेस एंड में मार्कस स्टॉनिस, मनीष पांडे और युवा बदोनी से उम्मीदें बढ़ेंगी.

बल्लेबाज़ी के मुकाबले गेंदबाज़ों ने एक यूनिट के तौर पर ज़्यादा बेहतर खेल दिखाया है. इसलिए 2022 के टॉप 40 गेंदबाज़ों की सूची में से आधे दर्जन लखनऊ के हैं.

चलते-चलते आख़िर में एक बात और राहुल के बारे में. इस बार भी कुछ मैचों में राहुल के स्ट्राइक रेट को लेकर सवाल उठे हैं, लेकिन आंकड़े ये बताते हैं कि लखनऊ के लिए सबसे ज़्यादा छक्के कप्तान ने ही लगाए हैं.

इंग्लैंड के पूर्व कप्तान केविन पीटरसन ने कुछ ही हफ्ते पहले कहा था कि राहुल जिस तरीके से परिपक्व हुए हैं, ये बात उनकी उम्र को झुठलाती है. पीटरसन का ये भी कहना था मौजूदा समय में वो राहुल को दुनिया के टॉप 3 बल्लेबाज़ों में मानते हैं.

ये बिल्कुल आसान नहीं होता कि आप जिस भी टीम के लिए खेलें, उसी टीम के लिए 500 से ज़्यादा रन बना डालें. राहुल अपने ऊपर न तो नई टीम, न नीलामी की राशि और न ही किसी तरह के दबाव का असर होने देते हैं.

इस बात ने उन्हें और उनकी टीम को फ़िलहाल आईपीएल में कामयाबी दिलाई है. यदि वो ऐसा ही प्रदर्शन जारी रखते हैं तो फ्रैंचाइज़ी की ये सफलता वो टीम इंडिया के लिए भी दोहरा सकते हैं.

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