By | January 2, 2021
Space station

Space station: इंटरनेशलन स्पेस स्टेशन (ISS) में इस साल (2020) भी बहुत से प्रयोग (Experiments) हुए, लेकिन नासा ने कुछ चुनिंदा प्रयोगों को विशेष कारणों से अलग ही माना है.

पिछले 20 सालों से इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) दुनिया को अपनी सेवाएं दे रहा है. साल 2020 में दुनिया का ध्यान ज्यादातर कोविड-19 (Covid-19) महामारी से जूझने में लगा रहा. लेकिन इसके बाद भी इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर काम होता रहा. 2020 में ISS बहुत सारे शोध हुए जो विज्ञान (Science) जगत में बहुत उल्लेखनीय रहे. इस दौरान करीब 300 प्रयोगों पर वैज्ञानिक शोधपत्र प्रकाशित हुए जो ISS पर हुए प्रयोगों पर आधारित थे. लेकिन नासा के एक लेख में इन पांच को खास कारणों से अलग माना गया है.

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दशकों से अंतरिक्ष से लौटने वाले यात्रियों (Astronauts) को स्पेस एनीमिया (Space Anaemia) का सामना करते देखा जा रहा था. यह बीमारी खून की कमी (Lack of Blood) के नाम से ज्यादा जानी जाती है. कनाडा स्पेस एजेंसी ने बोन मैरो एडिपोज रिएक्सन: रेड ऑर व्हाइट (MARROW) अध्ययन से शोधकर्ताओं ने यह पता लगाया कि स्पेस एनिया पृथ्वी (Earth) पर लौटने के बाद होती है जब गुरुत्व (Gravity) की वजह से शरीर के द्रव्यों में बदलाव आने लगता है. नासा के मुताबिक इस अध्ययन से पता चला कि अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में बिताए समय के मुताबिक लाल रक्त कोशिकाएं खोने लगते हैं. इससे उबरने में उनके समय अनुसार उन्हें एक से तीन महीने का समय

जापान (Japan) की स्पेस एजेंसी जाक्सा (JAXA) के प्रयोग में शोधकर्ताओं ने पार्किंसन (Parkinson) और अल्जाइमर (Alzheimer) जैसी बीमारियों (diseaseo के इलाज के लिए प्रयोग किए. उन्होंने इन बीमारियों में इलाज के लिए उपयोगी माने जाने वाले एमीलॉइड फिब्रिल प्रोटीन की पृथ्वी (Earth) और माइक्रोग्रैविटी (Microgravity) के हालातों में वृद्धि की तुलना की. इस प्रयोग की पड़ताल नेचर में प्रकाशित हुईं जिनसे पता चला की ये प्रोटीन पृथ्वी की तुलना में माइक्रोग्रेविटी में धीमे बढ़ते हैं. जो इस पर शोध के लिए आदर्श स्थिति है.

स्पेस स्टेशन (ISS) में वैज्ञानिकों ने पाया कि किसी स्पेस स्टेशन के सदस्य के बारे में उसके त्वचा (Skin) के सूक्ष्म जीवी (Microbes) देख कर बताया जा सकता है कि वह कब स्टेशन पर आया था और कब छोड़ कर गया. नासा की माइक्रोबियल ट्रैकिंग-2 (microbial tracking) अध्ययन के ये नतीजे PLOS One जर्नल में प्रकाशित हुए हैं. इसमें बताया गया है कि स्पेस स्टेशन में रहने वाले सूक्ष्मजीवी अंतरिक्ष यात्री की त्वचा पर मिलने वाले सूक्ष्मजोवों से मेल खाते है. यह अध्ययन एस्ट्रोनॉट्स को सुरक्षित रखने में मददगार साबित हो सकता है.

रूसी स्पेस एजेंसी रोसकोसमोस (Rosmoscos) के कोन्तूर (Kontur) प्रयोग में उसी फोर्स फीडबैक का अध्ययन किया गया जो वीडियो गेम में ज्यॉयस्टिक से गेम की गतिविधियों का निर्धारण करने के लिए किया जाता है. इस अध्ययन में ISS को ऑर्बिटर की तरह और पृथ्वी को दूर से नियंत्रित करने वाले स्थान का माना गाया और यह जानने का प्रयास किया गया कि फोर्स फीडबैक माइक्रोग्रैविटि में कितना कारगर होता है. इससे रोवर को नियंत्रण करना प्रभावी होगा

हड्डियों (Bone) की बीमारी खास तौर पर ओस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) के इलाज संबंधी एक प्रयोग में इटली की स्पेस एजेंसी ने ISS में भेजा था. इसके तहत खनिजों के बने एक प्रकार के नैनोपार्टिकल (Nanoparticle) का अध्ययन किया गया. यह उसी तरह का नैनोपार्टिकल है जैसा हड्डियों और दातों (Teeth) में पाया जाता है.

इस अध्ययन में पाया गया कि नए दवा पहुंचाने के सिस्टम (Drug Delivery system) का स्टेम सेल को प्रोमोट करने के लाभकारी प्रभाव है. इससे जो सेल बनते हैं वे हड्डियों के निर्माण के लिए जिम्मेदार होती हैं. वैज्ञानिक इसका उपयोग लंबी अंतरिक्ष यात्रा के कारण हड्डियों के क्षरण के इलाज में कर सकते हैं.

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