1971 indo pak war in hindi: एक लाइन के खत को पढ़कर पाक सेना किया था सरेंडर, जानिए क्या थे वो शब्द
जनरल नियाजी (General Niazi) तक खत ले जाने वाले कैप्टन निर्भय शर्मा लेफ्टिनेंट जनरल के पद तक पहुंचे थे. रिटायर्ड होने के बाद पहले अरुणाचल और फिर मिजोरम के गर्वनर भी रहे. साथ ही यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (UPSC) के मेम्बर भी रहे. और सबसे अहम बात यह कि जनरल शर्मा ने कश्मीर (Kashmir) और नॉथ-ईस्ट में आतंकवाद (Terrorism) के खिलाफ बहुत काम किया. वक्त-वक्त पर उनकी बहादुरी लिए उन्हें पीवीएसएम, यूवाईएसएम, एवीएसएम और वीएसएम अवार्ड से भी नवाज़ा गया.
नई दिल्ली. साल 1971 में भारत (India)-पाकिस्तान के बीच लड़ा गया युद्ध (War) कई दिन तक चला था. 2 पैरा बटालियन ग्रुप के पहुंचने के बाद से पाक सेना बांग्लादेश (Bangladesh) की राजधानी ढाका में चारों तरफ से घिर चुकी थी. इसी दौरान सरेंडर करने के लिए पाक सेना के लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी (Lt Gen AK Niazi) को एक खत भेजा गया था. यह खत सिर्फ एक लाइन का था.
लेकिन जनरल नियाजी तक खत लेकर जा रहे कैप्टन निर्भय और उनकी टीम पर ही हमला बोल दिया गया. जैसे-तैसे एक लाइन के उस खत को पाकिस्तानी सेना (Pakistan Army) के अफसर तक पहुंचाया गया. और जैसे ही नियाजी ने वो खत पढ़ा तो उसके बाद पाक सेना के 93 हजार अफसर और जवानों ने सरेंडर (Surrender) कर दिया. फोन पर हुई एक छोटी सी बातचीत में एक लाइन के खत का यह किस्सा खुद खत ले जाने वाले कैप्टन बाद में लेफ्टीनेंट जनरल बने निर्भय शर्मा ने न्यूज18 हिंदी के साथ साझा किया था.
1971 indo pak war in hindi
“हम ढाका शहर के बाहर उसके बॉर्डर पर खड़े थे. चार तरफ से भारतीय सेना ढाका को घेरे खड़ी थी. 16 दिसम्बर की सुबह मेजर जनरल जी. नागरा का एक मैसेज उनके एडीसी कैप्टन मेहता के मार्फत मिला. यह मैसेज हमारे सीओ कर्नल केएस. पन्नू के नाम आया था. मैसेज था कि एक खत जनरल नियाजी तक पहुंचाना है. सीओ साहब ने खत भेजने के लिए मुझे चुना. मुझे कैप्टन मेहता के साथ जाना था. सुबह 10.45 बजे मैं अपनी टीम के मेजर सेठी, लेफ्टिनेंट तेजेंदर और कैप्टन मेहता के साथ ढाका में दाखिल हो गया. यह पहला मौका था जब भारतीय सेना ढाका में घुस रही थी. हम एक जीप में सवार थे और सरेंडर का मैसेज ले जाते हुए इतिहास का हिस्सा भी बनने जा रहे थे.
उस एक लाइन के खत में लेफ्टीनेंट जनरल नियाजी के लिए लेफ्टीनेंट जनरल नागरा का यह मैसेज था, “My dear Abdullah, I am here. The game is up, I suggest you give yourself up to me and I will take care of you.”
1971 indo pak war in hindi
जनरल नियाजी और जनरल नागरा भारत-पाक बंटवारे से पहले एक-दूसरे को जानते थे. हालांकि जनरल नियाजी सरेंडर के लिए तैयार हो चुके थे. लेकिन उन्होंने कुछ शर्त रखीं थी, जिसे हमारे आर्मी चीफ जनरल सैम मानेकशॉ ने नकार दिया था. हमे नहीं पता था कि अभी तक पाक सेना को सरेंडर करने के आदेश नहीं मिले हैं. हम जब एक ब्रिज के पास पहुंचे तो हमारे ऊपर गोलियां दागी जाने लगीं.
तब मैंने अपनी पूरी ताकत से चीखते हुए फायरिंग रोकने के लिए कहा. फायरिंग तो रुक गई, लेकिन उन्होंने हमारे हथियार छीन लिए. वो पाक सेना का एक जूनियर कमीशंड अफसर था. मैंने उसे चेतावनी भरे लहाजे में कहा कि अगर हमे हाथ भी लगाया तो उसके नतीजे ठीक नहीं होंगे. भारतीय सेना ने ढाका को चारों ओर से घेर लिया है और उनका जनरल नियाजी सरेंडर करने को तैयार है.
मैंने उसे उसके सीनियर को बुलाने के लिए कहा. तभी वहां उसका एक कैप्टन आ गया. मैंने उसे पूरी बातों के साथ खत के बारे में भी बताया. तब वो हमे अपने एक कमांडर के पास ले गया जिसने हमसे खत लिया और हमे कुछ देर रुकने के लिए कहा. करीब आधा घंटे बाद मेजर जनरल मोहम्मद जमशेद हमारे सामने आए और जीप में बैठकर हमारे साथ चल दिए. जमशेद मेरे और मेजर सेठी के बीच में बैठे हुए थे. जमशेद खाकी ड्रेस में थे. एक पाकिस्तानी जीप हमारे पीछे चल रही थी.
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हम वापस अपने ठिकाने पर जा रहे थे. एक बार फिर से हमारे ऊपर फायरिंग होने लगी. मेजर सेठी को पैर में गोली लगी और एक गोली तेजेंदर को भी लगी और वो वहीं शहीद हो गया. कुछ देर बाद हम अपने ठिकाने पर पहुंच चुके थे. जनरल नागरा कर्नल पन्नू के साथ वहीं थे. इस तरह से मेजर जनरल मोहम्मद जमशेद ने अपनी पिस्तौल जनरल नागरा को सौंप कर सरेंडर कर दिया.”
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