Emergency in India: 24-25 जून के बीच क्या हुआ कि इंदिरा ने इमर्जेंसी लागू करने का मन बना लिया | इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने 25 जून 1975 को रात करीब 11.30 बजे देशभर में आपातकाल (Emergency) लागू कर दिया. आपातकाल लगाने से पहले जानते हैं कि क्या थे पिछले 48 घंटों के हालात और घटनाक्रम. जिसने इंदिरा के आपातकाल लगाने के फैसले को पुख्ता कर दिया.
इमर्जेंसी की ज्यादतियों की जांच के लिए मार्च 1977 में जस्टिस शाह आयोग का गठन किया गया. इस आयोग ने अपनी जो रिपोर्ट दी, उसमें उसने मुख्य तौर पर इंदिरा गांधी के कुछ खास सलाहाकारों और अफसरों को ज्यादतियों के लिए दोषी माना. हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट ने बाद इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया. जानते हैं ये लोग कौन थे.
इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 की आधी रात को देशभर में आपातकाल लगा दिया. ये करीब 22 महीने तक रहा. इस दौरान बड़े पैमाने पर देशभर में गिरफ्तारियां हुईं. लोगों के नागरिक अधिकार खत्म कर दिये गए. देशभर में कई तरह की ज्यादतियों की भी खबरें आईं. इसे लेकर वर्ष 1977 में सत्ता में आई जनता पार्टी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेसी शाह को इसकी जांच का काम सौंपा.
जस्टिस शाह ने 11 मार्च 1978 को तत्कालीन सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी. उनकी रिपोर्ट में आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों के लिए इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी के साथ उनके दो मंत्रियों और कई अफसरों को खासतौर पर जिम्मेवार पाया. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि इन लोगों अपने पद और ताकत का बेजा इस्तेमाल किया. नियमों से परे जाकर गलत काम किए.
जस्टिस शाह ने अपनी रिपोर्ट में इंदिरा सरकार में रक्षा मंत्री बंसीलाल, सूचना प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ला, इंदिरा के निजी सचिव आरके धवन, दिल्ली के लेफ्टिनेंट गर्वनर कृष्णा चांद, उनके सचिव नवीन चावला, दिल्ली पुलिस में डीआईजी पीएस भिंडर को दोषी पाया.
जानिए क्या कहती है शाह आयोग की इन लोगों के बारे में रिपोर्ट
बंसीलाल – आपातकाल के दौरान बंसीलाल पहले हरियाणा के मुख्यमंत्री और फिर रक्षा मंत्री बनाए गए. रिपोर्ट कहती है कि उन्होंने बड़े पैमाने पर लोगों को मीसा के तहत जेल भेजा. इसमें अपनी व्यक्तिगत खुन्नस भी निकाली. उन्होंने पद का गलत इस्तेमाल किया.
विद्याचरण शुक्ला – वो तब सूचना प्रसारण मंत्री थे. पत्रकारों और अखबारों के प्रति उनका रवैया उन दिनों बहुत निरंकुश था. वो मीडिया और मीडियाकर्मियों पर धौंस जमाया करते थे. बॉलीवुड गायक किशोर कुमार पर उन्होंने इंदिरा गांधी की तारीफ गाने के लिए कहा. जब किशोरकुमार ने मना किया तो उन्हें आल इंडिया रेडियो से प्रतिबंधित कर दिया गया.
कृष्णा चांद – आपातकाल के दौरान वो दिल्ली के लेफ्टिनेंट गर्वनर थे. उन पर विपक्ष के तमाम नेताओं को जबरन जेल भेजने और बेतुके फैसले करने का आरोप लगे. ये कहा जाता है कि उन दिनों जब दिल्ली में बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ हुई. लोगों के घर और स्लम्स तोड़े गए तो ऐसा कृष्णा चांद के आदेशों से हुआ. हालांकि चांद ने शाह आयोग के सामने कहा कि वो कमजोर आदमी थे. उन्हें जैसा आदेश ऊपर से मिलता था, वो वैसा करते थे. यहां तक कई बार संजय गांधी भी उन्हें आदेश देते थे.
नवीन चावला- तब आईएएस अफसर थे. वो दिल्ली के लेफ्टिनेंट गर्वनर कृष्णा चांद के सचिव थे. उन पर भी ज्यादती करने के आरोप लगे. जस्टिस शाह ने उनके लिए प्रतिकूल टिप्पणी की थी.
पीएस भिंडर – उन दिनों दिल्ली में भिंडर का आतंक था. वो मजिस्ट्रेटों पर दवाब डालकर अग्रिम तारीख के आदेशों पर उनसे पहले ही हस्ताक्षर करा लेते थे, जो फायरिंग से लेकर किसी भी तरह के दंडात्मक होते थे. शाह ने उनके लिए टिप्पणी लिखी कि वो किसी भी तरह निष्पक्ष प्रशासन के लिए धब्बे की तरह हैं.
आरके धवन- धवन तक इंदिरा गांधी के सचिव थे. आपातकाल में बेजा गिरफ्तारियों में उनकी भूमिका भी कोई कम नहीं रही. वो भी मजिस्ट्रेट पर दबाव डलवाकर मीसा में गिरफ्तारियों के लिए मजिस्ट्रेट से साइन कराते थे.
इंदिरा के सत्ता में लौटने पर इनका क्या हुआ
आइए अब जानते हैं कि 1980 में जब इंदिरा गांधी चुनाव जीतकर वापस सत्ता में लौटीं तो इन लोगों का क्या हुआ.
बंसीलाल – उनके अच्छे दिन फिर लौट आए. वो फिर मंत्री बने. 80 और 90 के दशक में वो दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे. वो राजीव गांधी की सरकार में भी मंत्री रहे. वर्ष 2006 में उनका निधन हो गया.
विद्याचरण शुक्ला – वह फिर कई सरकारों में मंत्री रहे. राजीव गांधी ने अगर उन्हें अपनी सरकार में मंत्री बनाया तो वो फिर पाला बदलकर वीपी सिंह के साथ चले गए. जनता दल सरकार में मंत्री रहे. फिर वीपी नरसिंहराव सरकार में भी मंत्री बने. वर्ष 2013 में उनका निधन हो गया.
आरके धवन – 80 में जब इंदिरा वापस सत्ता में लौटीं तो धवन ने फिर उनके साथ काम किया. वो राज्य सभा में भेजे गए. फिर पीवी नरसिंहराव सरकार में भी मंत्री बने. उनका भी निधन हो गया.
नवीन चावला- वो आपातकाल के दौरान बेशक बदनाम अफसर रहे लेकिन फिर उन्होंने 90 के दशक में आईएएस की नौकरी छोड़ दी. उन्होंने मदर टेरेसा पर किताब लिखी. उनके करीबी हो गए. बाद में मनमोहन सिंह की सरकार ने उन्हें चुनाव आय़ुक्त बनाया. वो फिर मुख्य निर्वाचन आयुक्त भी बने.
कृष्णा चांद – दिल्ली के लेफ्टिनेंट गर्वनर को जब शाह कमीशन ने पूछताछ के लिए बुलाया तो उन्होंने कहा कि वो तो केवल कठपुतली की तरह ऊपर से आने वाले आदेशों का पालन कर रहे थे लेकिन ऐसा लगता है कि इन पूछताछ से वो इतने दबाव में आ गए कि अपना जीवन खत्म कर लिया. 09 जुलाई 1978 की रात करीब 08.00 बजे वो अपने घर से निकले. दक्षिण दिल्ली स्थित अपने घर से दो किलोमीटर दूर एक वीरान कुएं में छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली. वो दो नोट्स भी छोड़कर गए थे.
पीएस भिंडर – भिंडर पर शाह कमीशन ने काफी प्रतिकूल लिखा था लेकिन इंदिरा के सत्ता में आते ही वो फिर दिल्ली पुलिस में ताकतवर हो गए. उन्हें दिल्ली पुलिस का कमिश्नर बनाया गया. बाद में वो दिल्ली पुलिस में डीजीपी पद से रिटायर हुए.
क्या है कबीर को मानने वालों का पंथ, ये क्यों कई धाराओं में बंटा
आखिर मच्छर इंसानों का खून क्यों पीते हैं? जानिए वैज्ञानिक वजह