By | June 16, 2022
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Explaine: जानिए कैसे होता है उप राष्ट्रपति का चुनाव

भारत में राष्ट्रपति का चुनाव 18 जुलाई को है इसके बाद 21 जुलाई को वोटों की काउंटिंग होगी. इस चुनाव में संसद के दोनों सदनों के अलावा देशभर के विधायक शिरकत करते हैं. उनके वोटों के आधार पर तय होता है कि कौन जीतेगा. जहां राष्ट्रपति के चुनाव में अप्रत्यक्ष तौर पर पूरे देश के निर्वाचित सांसद और विधायक हिस्सा लेते हैं, वैसा उपराष्ट्रपति चुनाव में नहीं होता.

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देश में उप राष्ट्रपति के लिए अगस्त 2022 में चुनाव होने की संभावना है. उसकी चुनाव प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हुई है लेकिन जुलाई के पहले या दूसरे हफ्ते चुनाव आयोग की घोषणा के साथ इसकी प्रक्रिया शुरू हो जाएगी.

देश में पहली बार उपराष्ट्रपति का चुनाव 1952 में राष्ट्रपति चुनाव के साथ ही शुरू हुआ था. सर्वपल्ली राधाकृष्णन देश के पहले उपराष्ट्रपति बने थे. वो दो कार्यकाल तक इस पद पर रहे. उप राष्ट्रपति का कार्यकाल भी पांच साल का ही होता है. ये चुनाव इसलिए अहम है क्योंकि उप राष्ट्रपति राज्यसभा का सभापति भी होता है.

उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद से ही विधानसभाओं का रोल नहीं

उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्यों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक मंडल यानी इलेक्टोरल कॉलेज के जरिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति से होता है. संसद के दोनों सदनों के सदस्य इसमें हिस्सा लेते हैं और हर सदस्य केवल एक वोट ही डाल सकता है. राष्ट्रपति चुनाव में चुने हुए सांसदों के साथ विधायक भी मतदान करते हैं लेकिन उप राष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा के सांसद ही वोट डाल सकते है.

कुल निर्वाचक: 790

वोटिंग में अनुपातिक पद्धति क्या होती है

उप राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव इलेक्शन अनुपातिक प्रतिनिधि पद्धति (proportional representation) से किया जाता है. इसमें वोटिंग खास तरीके से होती है जिसे सिंगल ट्रांसफ़रेबल वोट सिस्टम कहते हैं.

– इसमें मतदाता को वोट तो एक ही देना होता है मगर उसे अपनी पसंद के आधार पर प्राथमिकता तय करनी होती है.

– वह बैलट पेपर पर मौजूद उम्मीदवारों में अपनी पहली पसंद को 1, दूसरी पसंद को 2 और इसी तरह से आगे की प्राथमिकता देता है.

उप राष्ट्रपति चुनावों में वोटो की काउंटिग प्रिफरेंशियल सिस्टम के आधार पर होती है. इसकी प्रक्रिया कुछ जटिल भी होती है. (File Photo)

प्रत्याशी के पास कितने प्रस्तावक और समर्थक

– चुनाव में खड़े होने के लिए किसी भी व्यक्ति को कम से कम 20 संसद सदस्यों को प्रस्तावक और कम से कम 20 संसद सदस्यों को समर्थक के रूप में नामित कराना होता है

– उपराष्ट्रपति के रूप में प्रत्याशी बनने वाले 15,000 रुपए की जमानत राशि जमा करनी होती है.

– नामांकन के बाद फिर निर्वाचन अधिकारी नामांकन पत्रों की जांच करता है और योग्य उम्मीदवारों के नाम बैलट में शामिल किए जाते हैं.

उप राष्ट्रपति पद के लिए पात्रता

कोई व्यक्ति उपराष्ट्रपति होने का पात्र तभी होगा, अगर

1. भारत का नागरिक हो

2. 35 साल वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो

3. वह राज्यसभा के लिए चुने जाने की योग्यताओं को पूरा करता हो.

4. उसे उस राज्य या संघ राज्य क्षेत्र में संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का मतदाता होना चाहिए

5. कोई व्यक्ति, जो भारत सरकार के या किसी राज्य सरकार के अधीन या किसी अधीनस्थ स्थानीय प्राधिकरण के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, वह भी इसका पात्र नहीं है।

काउंटिंग भी अलग तरीके से

पहले यह देखा जाता है कि सभी उम्मीदवारों को पहली प्राथमिकता वाले कितने वोट मिले हैं. फिर सभी को मिले पहली प्राथमिकता वाले वोटों को जोड़ा जाता है. कुल संख्या को 2 से भाग किया जाता है और भागफल में 1 जोड़ दिया जाता है. अब जो संख्या मिलती है उसे वह कोटा माना जाता है जो किसी उम्मीदवार को काउंटिंग में बने रहने के लिए ज़रूरी है.

अगर पहली गिनती में ही कोई कैंडिडेट जीत के लिए ज़रूरी कोटे के बराबर या इससे ज़्यादा वोट हासिल कर लेता है तो उसे विजयी घोषित कर दिया जाता है. अगर ऐसा न हो पाए तो प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाती है. सबसे पहले उस उम्मीदवार को चुनाव की रेस से बाहर किया जाता है जिसे पहली गिनती में सबसे कम वोट मिले हों.

लेकिन उसे पहली प्राथमिकता देने वाले वोटों में यह देखा जाता है कि दूसरी प्राथमिकता किसे दी गई है. फिर दूसरी प्राथमिकता वाले ये वोट अन्य उम्मीदवारों के ख़ाते में ट्रांसफर कर दिए जाते हैं. इन वोटों के मिल जाने से अगर किसी उम्मीदवार के मत कोटे वाली संख्या के बराबर या ज़्यादा हो जाएं तो उस उम्मीदवार को विजयी घोषित कर दिया जाता है.

अगर दूसरे राउंड के अंत में भी कोई कैंडिडेट न चुना जाए तो प्रक्रिया जारी रहती है. सबसे कम वोट पाने वाले कैंडिडेट को बाहर कर दिया जाता है. उसे पहली प्राथमिकता देने वाले बैलट पेपर्स और उसे दूसरी काउंटिंग के दौरान मिले बैलट पेपर्स की फिर से जांच की जाती है और देखा जाता है कि उनमें अगली प्राथमिकता किसे दी गई है.

फिर उस प्राथमिकता को संबंधित उम्मीदवारों को ट्रांसफ़र किया जाता है. यह प्रक्रिया जारी रहती है और सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवारों को तब तक बाहर किया जाता रहेगा जब तक किसी एक उम्मीदवार को मिलने वाले वोटों की संख्या कोटे के बराबर न हो जाए.

उपराष्ट्रपति अगर किसी सदन का सदस्य है तो

उपराष्ट्रपति संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होता है. यदि संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का कोई सदस्य उपराष्ट्रपति चुना जाता है तो उसे सदन की अपनी सदस्यता छोड़नी पड़ती है.

क्या होती हैं जिम्मेदारियां

वैसे तो उपराष्ट्रपति की संवैधानिक जिम्मेदारियां बहुत सीमित हैं लेकिन राज्यसभा का सभापति बनने के अलावा उनकी जिम्मेदारी तब जरूर अहम हो जाती है, जबकि राष्ट्रपति का पद किसी वजह से ख़ाली हो जाए तो यह ज़िम्मेदारी उप राष्ट्रपति को ही निभानी पड़ती है क्योंकि राष्ट्रप्रमुख के पद को ख़ाली नहीं रखा जा सकता. वैसे हमारे देश के प्रोटोकॉल में राष्ट्रपति सबसे ऊपर होता है और फिर उप राष्ट्रपति. इसके बाद प्रधानमंत्री का नंबर आता है

कितने दिनों में चुनाव हो जाना चाहिए

उप राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा हो जाने के 60 दिनों के अंदर चुनाव कराना ज़रूरी होता है. इसके लिए चुनाव आयोग एक निर्वाचन अधिकारी नियुक्त करता है जो मुख्यत: किसी एक सदन का सेक्रेटरी जनरल होता है. निर्वाचन अधिकारी चुनाव को लेकर पब्लिक नोट जारी करता है और उम्मीदवारों से नामांकन मंगवाता है.

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