By | May 27, 2021
Subodh Kumar Jaiswal

केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के नए निदेशक सुबोध कुमार जायसवाल ( Subodh Kumar Jaiswal )ने आज सीबीआई मुख्यालय में औपचारिक तौर पर अपना पदभार संभाल लिया. इसके साथ ही उन्होंने सीबीआई के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ अपनी पहली बैठक की, जिसमें सीबीआई के वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें सीबीआई में चल रहे तमाम महत्वपूर्ण घटनाक्रमों की जानकारी दी. महाराष्ट्र कैडर के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी सुबोध कुमार जायसवाल 1985 बैच के आईपीएस हैं और इसके पहले वह महाराष्ट्र में पुलिस महानिदेशक के तौर पर भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं. वर्तमान में वह (सीबीआई में चयन के पूर्व तक) केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल में महानिदेशक के पद पर कार्यरत थे. सुबोध कुमार जायसवाल का चयन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 3 सदस्य कमेटी ने किया.

ये साल 2018 की दूसरी तिमाही की बात है. बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बने चार साल हो रहे थे. सूबे के चुनाव में अभी एक साल से ज़्यादा का वक़्त बाक़ी था, लेकिन फडणवीस के सहयोगी उद्धव ठाकरे लोकसभा चुनाव में बीजेपी से अलग ताल ठोकने का एलान कर चुके थे.

इस दूसरी तिमाही में फडणवीस की बातचीत भारत की शीर्ष ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ में पोस्टेड एक अधिकारी से होती है. वो अधिकारी, जिसके ख़ाकी करियर की शुरुआत 33 साल पहले महाराष्ट्र से ही हुई थी.

बताते हैं कि नौ साल तक दिल्ली स्थित रॉ के दफ़्तर में सेवाएं देने के बाद ये अफ़सर महाराष्ट्र लौटना चाहते थे. लेकिन, अफ़सर से उलट मुख्यमंत्री फडणवीस इन्हें महाराष्ट्र लाने के लिए कितने उत्साहित थे, इसे यूं समझ सकते हैं कि उन्होंने इस मामले को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ले जाने में गुरेज़ नहीं की.

आख़िरकार तबादला हुआ और 30 जून 2018 को इस ऑफ़िसर ने मुंबई पुलिस कमिश्नर का पद संभाला. अब क़रीब तीन साल बाद इन्हें देश की शीर्ष जाँच एजेंसी सीबीआई का डायरेक्टर नियुक्त किया गया है.

कैसे चुने गए सीबीआई डायरेक्टर

सुबोध के करियर से पहले बात करते हैं बतौर सीबीआई डायरेक्टर उनकी नियुक्ति की. इसकी कहानी भी उनके करियर से कम दिलचस्प नहीं है.

सीबीआई डायरेक्टर का पद फ़रवरी 2021 यानी बीते क़रीब तीन महीने से ख़ाली पड़ा था. इस पद पर कोई नियमित नियुक्ति नहीं हुई थी. इस बीच ‘कॉमन कॉज़’ नाम के एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी डाल दी कि सीबीआई डायरेक्टर पद पर जल्द कोई नियुक्ति की जाए.

फिर कोर्ट और सरकार के बीच बातचीत भी हुई कि जल्द कोई तारीख़ तय करके सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति कर दी जाए. आख़िरकार मई महीने में इस पर काम शुरू हुआ. प्रक्रिया के तहत डिपार्टमेंट ऑफ़ पर्सनल ऐंड ट्रेनिंग यानी DOPT की ओर से कुल 109 संभावित उम्मीदवार फ़ाइनल किए गए.

ये नाम एक हाई-पावर कमेटी के सदस्यों को भेजे जाते हैं. ये कमेटी इन नामों में से चुनिंदा दो-चार लोगों को शॉर्टलिस्ट करती है. फिर इन्हीं शॉर्टलिस्ट लोगों में से किसी को पद पर नियुक्त किया जाता है. इस हाई-पावर कमेटी में प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायधीश और विपक्ष के नेता शामिल होते हैं.

इन नामों पर मंथन से पहले माना जा रहा था कि 1984 बैच के वाईसी मोदी और राकेश अस्थाना सरकार के भरोसेमंद उम्मीदवार हैं और इन्हीं में से किसी को सीबीआई डायरेक्टर बनाया जा सकता है.

24 मई को इस मीटिंग में उम्मीदवार शॉर्टलिस्ट करने वाली कमेटी में शामिल चीफ़ जस्टिस एनवी रमन्ना ने प्रधानमंत्री को ध्यान दिलाया कि 2019 में तत्कालीन चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली बेंच ने एक फ़ैसला सुनाया था.

फ़ैसले के मुताबिक़ जिन अफ़सरों के रिटायरमेंट में सिर्फ़ छह महीने से कम वक़्त बचा हो, उन्हें UPSC की तरफ़ से डीजीपी स्तर के पदों पर नियुक्त न किया जाए.

असम मेघालय काडर के वाईसी मोदी अभी NIA चीफ़ हैं और 31 मई को रिटायर हो रहे हैं. वहीं गुजरात काडर के राकेश अस्थाना अभी BSF चीफ़ हैं और 31 अगस्त को रिटायर हो रहे हैं.

चूंकि CBI, IB और RAW प्रमुखों की नियुक्ति दो साल के लिए होती है, इसलिए छह महीने वाले नियम की वजह से CBI डायरेक्टर के तौर पर मोदी या अस्थाना की नियुक्ति नहीं की जा सकती. दिलचस्प बात ये है कि CBI डायरेक्टर चुनने में कोर्ट के आदेश वाला ये पैमाना पहली बार लागू किया जा रहा है.

मोदी और अस्थाना पहले भी सीबीआई में काम कर चुके हैं, लेकिन चीफ़ जस्टिस के रुख़ की वजह से दोनों ही डायरेक्टर पद की दौड़ से बाहर हो गए. विपक्षी नेता अधीर रंजन चौधरी भी इसी पक्ष में थे. अंत में इस कमेटी ने CISF चीफ़ सुबोध जायसवाल, SSB DG कुमार राजेश चंद्रा और गृह मंत्रालय में विशेष सचिव वीएसके कौमुदी का नाम फ़ाइनल किया. अंत में सुबोध कुमार जायसवाल सीबीआई प्रमुख चुने गए.

विभाग की ओर से भेजे गए 109 में से सिर्फ़ तीन अफ़सर ही ऐसे थे, जिनके रिटायरमेंट में छह महीने से ज़्यादा का वक़्त बचा था. इन तीनों में सबसे वरिष्ठ सुबोध कुमार जायसवाल ही थे.

अधीर रंजन की आपत्तियां

सुबोध कुमार जायसवाल दो साल के लिए सीबीआई डायरेक्टर बनाए गए हैं. वो सितंबर 2022 में रिटायर होंगे. हालांकि, सीबीआई डायरेक्टर के चुनाव की पूरी प्रक्रिया पर कांग्रेस नेता अधीर रंजन ने सवाल उठाए हैं.

उन्होंने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, ‘इस चुनाव में जो प्रक्रिया अपनाई गई, वो कमेटी के तौर-तरीक़ों के आड़े आई. 11 मई को मुझे 109 नामों की लिस्ट दी गई. फिर इनमें से 10 नाम शॉर्टलिस्ट किए गए, जो तीन घंटे के अंदर घटकर छह रह गए. DOPT का ये चलताऊ रवैया बेहद आपत्तिजनक है’.

डिपार्टमेंट ऑफ़ पर्सनल ऐंड ट्रेनिंग यानी DOPT ही केंद्रीय संस्थानों में सभी अहम नियुक्तियों का कामकाज देखता है.

क्या है सुबोध कुमार का इतिहास

1962 में धनबाद में पैदा हुए सुबोध 1985 बैच के महाराष्ट्र काडर के आईपीएस हैं. महज़ 23 साल की उम्र में उनका करियर 1986 में बतौर एएसपी शुरू हुआ था. उनकी पहली नियुक्ति महाराष्ट्र के अमरावती में हुई थी. वो गढ़-चिरौली में एएसपी रहे, जहां उन्होंने नक्सल-विरोधी ऑपरेशन चलाए.

सुबोध महाराष्ट्र की स्टेट रिज़र्व पुलिस फ़ोर्स के मुखिया भी बनाए जा चुके हैं. वो मुंबई एंटी-टेररिज़्म स्क्वॉड, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सुरक्षा में लगी एसपीजी, महाराष्ट्र पुलिस की एसआईटी और स्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरो में काम कर चुके हैं. वो 26/11 आतंकी हमले, मुंबई में सीरियल ब्लास्ट, एल्गार परिषद और भीमा-कोरेगांव हिंसा मामलों की जाँच में शामिल रहे हैं.

2009 में सुबोध केंद्रीय नियुक्ति पर दिल्ली आ गए. इसके बाद उन्होंने इंटेलिजेंस ब्यूरो और रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) में काम किया. 2009 में उन्हें राष्ट्रपति पदक से भी सम्मानित किया गया. 35 साल लंबे करियर के बावजूद उनके बारे में ज़्यादा जानकारी लोगों के बीच नहीं है और वो लो-प्रोफ़ाइल अफ़सर माने जाते हैं.

वैसे उनके व्यक्तित्व और काम के तौर-तरीक़ों की सबसे सही व्याख्या फ़र्ज़ी स्टांप पेपर स्कैम करता है.

जब पुलिस महकमा ही हो गया था ख़िलाफ़

मुंबई में वरिष्ठ पत्रकार और क्राइम रिपोर्टर जीतेंद्र दीक्षित बताते हैं कि सुबोध तेलगी स्कैम की जाँच कर रही SIT के अहम सदस्य थे. इस केस की शुरुआती जाँच सुबोध ने ही की थी और इसकी दो रिपोर्ट्स सरकार को सौंपी थीं. सुबोध ने बिना किसी दबाव में आए अपनी रिपोर्ट में ये बात रखी कि महाराष्ट्र पुलिस के तमाम अधिकारियों ने तेलगी से रिश्वत खाई है.

जीतेंद्र बताते हैं कि सुबोध की रिपोर्ट में यहां तक लिखा था कि पुलिसवालों ने तेलगी से सुविधाओं और परिजन को गिरफ़्तार न करने के एवज में वसूली तक की थी. उनकी रिपोर्ट के आधार पर मुंबई पुलिस कमिश्नर से लेकर स्टाफ़ तक, कई पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की गई थी.

इस रिपोर्ट के बूते सुबोध अपने ही महकमे के कर्मचारियों के बीच खलनायक बन गए. ख़ाकी वर्दीवाले तमाम लोगों ने उनका साथ छोड़ दिया.

तेलगी स्कैम को क़रीब से देखनेवाले मानते हैं कि अगर 2004 में सत्ता-परिवर्तन के बाद इस केस की जाँच सीबीआई के हाथ में न जाती, तो एनसीपी नेता छगन भुजबल और उनके भतीजे समीर भुजबल की दिक़्क़तें और बढ़ सकती थीं. इस केस की आंच उन तक भी पहुँच रही थी. 17 जनवरी 2006 को तेलगी को 30 साल जेल की सज़ा सुनाई गई थी.

माना जाता है कि तेलगी स्कैम का ख़ुलासा पत्रकार संजय सिंह ने किया था. इसी स्कैम पर लिखी अपनी किताब में संजय सुबोध जायसवाल को एक अड़ियल, ज़िद्दी और रूखे इंसान के तौर पर दर्ज करते हैं. वरिष्ठ पत्रकार जीतेंद्र के मुताबिक़ उनके साथ काम कर चुके लोग मानते हैं कि वो लकीर पर चलनेवाले शख़्स हैं, जिन्हें अपने काम में नेताओं की दख़लअंदाज़ी बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होती.

मुंबई के वरिष्ठ पत्रकार जीतेंद्र दीक्षित इस सवाल को दिलचस्प मानते हैं कि जिस सीबीआई को ‘पिंजड़े में बंद सरकारी तोते’ की संज्ञा दी जा चुकी है, सुबोध कुमार जायसवाल के नेतृत्व में उसमें क्या तब्दीली आती है. ख़ासकर इस बात को ध्यान में रखते हुए कि सीबीआई की हालिया कार्रवाइयों पर विपक्ष राजनीति से प्रेरित होने के आरोप लगाता रहा है.

महाविकास अघाड़ी से खींचतान की यही वजह थी?

मुंबई पुलिस कमिश्नर पद पर एक साल रहने के बाद 2019 में सुबोध महाराष्ट्र के पुलिस निदेशक यानी DGP बनाए गए. लेकिन 2019 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों ने राज्य की सियासत में बहुत कुछ बदल दिया. बीजेपी और शिवसेना का साथ टूट गया. हफ़्तों की माथा-पच्ची के बाद आख़िरकार शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने मिलकर सरकार बनाई.

फ़्री प्रेस जर्नल के कंसल्टिंग एडिटर संजय जोग बीबीसी को बताते हैं, ‘राज्य में आईपीएस अधिकारियों के तबादलों और प्रमोशन के मसले पर सुबोध और महाविकास अघाड़ी सरकार के बीच काफ़ी मतभेद थे. सुबोध को इन मुद्दों पर सरकार की नीति पसंद नहीं आई, जिससे सरकार और सुबोध कुमार जायसवाल के बीच खाई और चौड़ी होती गई’.

एक वरिष्ठ अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बीबीसी को बताते हैं, ‘जब सुबोध जायसवाल पुलिस महानिदेशक थे, तो उन्होंने अधिकारियों को क्रीम पोस्टिंग की पैरवी न करने की चेतावनी दी थी.’

राजनीतिक हलक़ों और पुलिस फ़ोर्स में ये चर्चा आम थी कि इस खींचतान की वजह से ही उन्होंने ख़ुद को केंद्र में नियुक्त किए जाने की माँग की थी. दिलचस्प बात ये है कि इस दौरान पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने खुलकर सुबोध का समर्थन किया था.

हालांकि, इस मुद्दे पर महाविकास अघाड़ी सरकार ने कहा था कि उन्होंने सुबोध की माँग तुरंत स्वीकार कर ली थी. वहीं केंद्र ने भी दिसंबर 2020 में उन्हें CISF डीजी नियुक्त किया था.

सुबोध के साथ अनिल देशमुख का ज़िक्र क्यों?

सुबोध कुमार जायसवाल को सीबीआई डायरेक्टर नियुक्त किए जाने की ख़बर आने के बाद से मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख का ख़ूब ज़िक्र हो रहा है. वजह ये है कि सीबीआई चीफ़ के तौर पर सुबोध देशमुख के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच करेंगे.

ये मामला इसी साल मार्च में शुरू हुआ, जब मुंबई पुलिस कमिश्नर रहे परम बीर सिंह ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक पत्र लिखा. पत्र में परम बीर सिंह ने आरोप लगाया कि गृह मंत्री अनिल देशमुख ने शीर्ष पुलिस अधिकारियों को हर महीने सौ करोड़ रुपए की उगाही का टार्गेट दिया था.

इस मामले के तूल पकड़ने पर अनिल देशमुख को पद से हाथ धोना पड़ा था. वहीं मार्च में ही सरकार ने परम बीर सिंह का तबादला करके उन्हें डीजी होमगार्ड्स बना दिया गया था. इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ वो कोर्ट भी गए थे. देशमुख के ख़िलाफ भ्रष्टाचार का मामला सीबीआई के पास है.

देवेंद्र फडणवीस के कार्यकाल को छोड़ दें, तो 70 साल के अनिल देशमुख 1995 के बाद से लगातार मंत्री हैं. वो उन चुनिंदा नेताओं में से हैं, जो हर पार्टी की सरकार में जगह बनाने में कामयाब रहे हैं.

सीबीआई डायरेक्टर का पद इतने दिनों से ख़ाली क्यों था?

सीबीआई में काफ़ी वक़्त से उथल-पुथल चल रही है. इसकी शुरुआत 2018 में हुई थी, जब सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा ने एजेंसी में नंबर दो रहे राकेश अस्थाना पर भ्रष्टाचार के आरोप में FIR दर्ज कराई थी. इसके बाद जनवरी 2019 में सरकार ने दोनों ही अधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था.

फिर आलोक वर्मा की जगह नागेश्वर राव को CBI का अंतरिम डायरेक्टर बनाया गया. फ़रवरी 2019 में पीएम मोदी के पैनल ने ऋषि कुमार शुक्ला को सीबीआई डायरेक्टर बनाया. इसके पाँच दिन पहले ही मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ की सरकार ने ऋषि को डीजीपी पद से हटाकर पुलिस हाउसिंग बोर्ड में भेज दिया था.

इस बीच फ़रवरी 2020 में सीबीआई ने अस्थाना को क्लीन चिट दे दी थी. तीन फ़रवरी 2021 को ऋषि कुमार शुक्ला का कार्यकाल ख़त्म होने पर गुजरात काडर के आईपीएस प्रवीण सिन्हा को प्रभारी बनाया गया. अब तीन महीने बाद सुबोध कुमार जायसवाल सीबीआई डायरेक्टर नियुक्त किए गए हैं.

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