क्या है चुंबन (Kiss) के पीछे का विज्ञान, आख़िर हमें चुम्बन (Kiss) लेना क्यों इतना पसंद होता है

By | March 29, 2021

क्या है चुंबन (Kiss) के पीछे का विज्ञान, आख़िर हमें चुम्बन (Kiss) लेना क्यों इतना पसंद होता है

इमरान हाशमी अपनी ‘किस’ (Kiss) के लिए जाने जाते हैं. किस यानि चुंबन. वैसे चुंबन के पीछे एक पूरा विज्ञान होता है. वैज्ञानिक बताते हैं कि 10 सेंकड की किस में 8 करोड़ बैक्टेरिया हम एक दूसरे से शेयर करते हैं. सुनने में अजीब लगता है ना. इसके फायदे भी हैं और नुकसान भी.

किसिंग से इतने बैक्टेरिया पास होने के बावजूद हाथ मिलाने से हमारे बीमार पड़ने की संभावना ज्यादा है.  किसिंग के पीछे की साइंस कहती है कि भले ही इस काम में बैक्टेरिया का लेना-देना हो जाए लेकिन आप दोनों के लिए इसके कई फायदे भी हैं.

प्यार को लेकर हमारा पहला अनुभव होठों से ही जुड़ा होता है. मां का दूध या बोतल से दूध पीते हुए बच्चा अपने होंठ का जिस तरह इस्तेमाल करता है, वो किसिंग से काफी मिलता जुलता है. यह शुरुआती बातें ही बच्चे के दिमाग में वह न्यूरल/नसों से जुड़ा रास्ता तैयार करती है, जो किसिंग को लेकर मन में सकारात्मक भाव पैदा करती हैं.

क्यों किस के दौरान बेहतर महसूस करते हैं
हमारे होंठ शरीर का ऐसा सबसे एक्सपोज़्ड हिस्सा है जो कामुकता जगाता है. इंसानों के होंठ, बाकी जानवरों से अलग बाहर की ओर निकले हुए हैं. उनमें संवेदनशील नसों की भरमार है तभी उसका ज़रा सा छुआ जाना भी हमारे दिमाग तक सिग्नल पहुंचाता है और हम अच्छा महसूस करते हैं.

फिर दिमाग का एक बड़ा सक्रिय हो जाता है
किसिंग संवेदक सूचना से जुड़े हमारे दिमाग के एक बड़े हिस्से को सक्रिय कर देता है. समझिए कि अचानक हमारा दिमाग काम पर लग जाता है. यह सोचने लगता है कि अगला कदम क्या होने वाला है. किस का जादू कुछ इस तरह होता है कि हमारा शरीर के हार्मोन्स और न्यूरोट्रांसमिटर्स मानो वॉशिंग मशीन की तरह घूमने लगते हैं. हमारी सोच और भावना पर असर पड़ना शुरू हो जाता है.

दो लोगों के किस किन चीजों का आदान-प्रदान
जब दो लोग होठों पर किस करते हैं तो औसत 9 मिलीग्राम पानी, .7 मिलीग्राम प्रोटीन, .18 मिलीग्राम ऑर्गैनिक कम्पाउंड्स, .71 मिलीग्राम अलग अलग तरह के फैट्स और .45 मिलीग्राम सोडियम क्लोराइड का आदान प्रदान होता है. कैलरी को बर्न करने का काम भी किसिंग करती है. बताया जाता है कि किस करने वाला जोड़ा 2 से 26 कैलरीज़ प्रति मिनट खर्च करता है और इस आनंद को हासिल करने के दौरान करीब 30 अलग तरह की मांसपेशियों का इस्तेमाल होता है.

कई संस्कृतियों में इसे पाप समझा जाता है
कई बार किसिंग को थूक का आदान प्रदान भी कहा जाता है. लेकिन यह जानने वाली बात है कि इस अच्छे लगने वाले ‘अजीब’ काम की शुरूआत कब हुई. कहते हैं कि पश्चिम में तो यह काम 2000 साल पहले शुरू हो चुका था. वहीं 2015 की एक स्टडी कहती है कि 168 संस्कृतियों में से आधी से भी कम है जो होंठ से होंठ के मिलाप को स्वीकार करती हैं. कई संस्कृतियों में यह अभी भी ‘पाप’ है.

किसिंग का फेरोमोन्स से क्या रिश्ता
एक स्टडी कहती है कि महिलाएं अपने पार्टनर को चुनते वक्त उसके किस करने के तरीके पर बहुत गौर फरमाती हैं. वहीं यह भी माना जाता है कि किसिंग दो लोगों को इतना पास लाती है कि वह एक दूसरे के फेरोमोन्स को भी जांच सकते हैं.

फेरोमोन्स दरअसल वह कैमिकल है जो अलग अलग गंध पैदा करता है. वैसे तो यह कैमिकल जानवरों में ज्यादा काम करता है लेकिन ऐसा माना जाता है कि इंसानी मेलजोल में भी यह काम आता है. मतलब किसी को किस करते हुए हम उस गंध तक पहुंच जाते हैं जो उस व्यक्ति को दूसरे से अलग करती है. कभी हमें वो गंध पसंद आती है और कभी हम उसी की वजह से आगे से उस शख्स को किस करने से रुक जाते हैं.

रिश्ता बने मजबूत
किस(चुम्बन) करने को सुखदायी एक्टिविटी माना जाता है. ये शारीरिक संबंधों के लिए भी आवश्यक है. प्यार और साथ को बनाए रखने में मददगार है. साथी से रिश्ते को मजबूत करता है.

तनाव कम होता है
अपने पार्टनर को किस करने से दिमाग से ऐसे केमिकल निकलते हैं, जो दिमाग को शांत करते हैं. इससे न केवल तनाव कम होता है बल्कि दिमाग फ्रेश हो जाता है.

मेटाबॉलिज्म
किस करने से कैलोरी बर्न होती है, जिससे मेटाबॉलिज्म को बढ़ावा मिलता है.

मुंह रहे सेहतमंद
हमारे मुंह की लार में बैक्टीरिया, वायरस आदि से लड़ने वाले पदार्थ होते हैं. इसलिए किस करने से हमारा मुंह, दांत और मसूड़े सेहतमंद बने रहते हैं.

इम्युनिटी बढ़ती है
अपने साथी के मुंह में रहने वाले कीटाणुओं के संपर्क में आने से हमारी इम्युनिटी भी मजबूत होती है.

किस करने के नुकसान
किस करने से कुछ बीमारियां आसानी से फैल सकती हैं
– गले और नाक से निकले ड्रॉपलेट से
– कुछ इन्फेक्टेड ड्रॉपलेट हवा में भी होते हैं, जब संक्रमित ड्रॉपलेट को आप सांस के माध्यम से अंदर ले जाते हैं तो आप बीमार हो सकते हैं
– नाक और गले से कुछ संक्रमित कण अपने छोटे आकार के कारण लंबे समय तक हवा में रह सकते हैं. उन्हें ड्रॉपलेट नुक्लेइ कहा जाता है. ये सीधे फेफड़ों में प्रवेश कर सकते है. यह बीमारी का कारण बन सकते हैं.
– कई तरह के इंफेक्शन

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