electricity crisis in india: भारत में हर साल क्यों होता है बिजली संकट

By | May 9, 2022
electricity crisis in india

electricity crisis in india: हमारे देश में हर साल बिजली संकट का आना उतना ही तय रहता है, जितना कि गर्मी का आना। पिछले साल भी इसी तरह का संकट आया था। उस वक़्त भी कोयले की कमी और सप्लाई चेन से जुड़ी दिक्कतों को वजह बताया गया। बिजली संकट के बारे में सरकार भी पहले से ही जानती है, फिर भी वह इसे रोक नहीं पाती। आइए समझते हैं कि इस संकट की वजह क्या है और इसे कैसे दूर किया जा सकता है।

बिजली संकट की वजह क्या है?
बिजली संकट की सबसे बड़ी वजह है कोयले की कमी। देश में करीब 51 फ़ीसदी बिजली कोयले से चलने वाले डेढ़ सौ पावर प्लांट्स में बनती है। इनमें से 81 कोयले की कमी से जूझ रहे हैं। यही वजह है कि उत्तर प्रदेश से लेकर राजस्थान और पंजाब जैसे राज्यों में बड़े पैमाने बिजली कटौती हो रही है।

कोयले की किल्लत रूस-यूक्रेन जंग की वजह से हुई। ये दोनों मुल्क एनर्जी सेक्टर के सबसे बड़े निर्यातकों में शुमार हैं। इनके बीच जंग छिड़ने से कोयले के दाम में इजाफा हुआ। ऐसे में सरकार ने कोयले का आयात तकरीबन 15 फ़ीसदी घटा दिया। इसलिए कई पावर प्लांट्स में कोयले की किल्लत हो गई। रही-सही कसर लचर सप्लाई चेन ने पूरी कर दी।

भारत कोयले की खान, फिर किल्लत क्यों?
भारत में कोयले का चौथा सबसे बड़ा भंडार है। लेकिन एनर्जी के मामले में कोयले पर भारत की निर्भरता हद से ज़्यादा है। यही वजह है कि भारत को बड़े पैमाने पर कोयला आयात भी करना पड़ता है। जब भी आयात में थोड़ा ऊंच-नीच होता है, हमारी बिजली व्यवस्था चरमरा जाती है। भारत ख़ुद भी पर्यावरण की सुरक्षा के लिए कोयले का उत्पादन घटाने की कोशिश करता है। यह भी कोयले के किल्लत की एक बड़ी वजह है।

क्या सिर्फ कोयला है बिजली संकट के लिए जिम्मेदार?
बेशक देश में सबसे ज़्यादा बिजली कोयले से बनती है, लेकिन विद्युत आपूर्ति में हाइड्रो पावर यानी पानी से बनने वाली बिजली की भी अहम भूमिका है। लेकिन दिक्कत की बात यह है कि गर्मियों में हाइड्रो पावर का उत्पादन भी 60-70 फ़ीसदी तक घट जाता है। इस बार गर्मी का सीजन जल्दी शुरू भी हो गया। बिजली की डिमांड अमूमन मई-जून में अधिक होती है।

लेकिन इस बार मार्च से ही रेकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ने लगी। इसलिए बिजली की मांग भी जल्दी बढ़ गई। सरकारों के पास इसका कोई इंतजाम था नहीं, तो डिमांड बढ़ते ही सारी व्यवस्था चरमरा गई।

किन राज्यों में ज़्यादा है बिजली संकट?
देश के करीब आधा दर्जन राज्यों में बिजली संकट काफी गहरा है। इनमें उत्तर प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान और झारखंड जैसे राज्य शामिल हैं। दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार का कहना है कि कोयले की कमी की वजह से मेट्रो ट्रेन और अस्पतालों में निर्बाध बिजली आपूर्ति प्रभावित हो सकती है।

सबसे ज़्यादा आबादी वाले उत्तर प्रदेश में कोयले का स्टॉक ज़रूरत से करीब 75 फ़ीसदी कम है। महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने बिजली संकट को लेकर तकरीबन तीन घंटे तक मीटिंग की। महाराष्ट्र को फिलहाल करीब 4 हजार मेगावॉट कम बिजली मिल रही है। यूपी में बिजली कटौती को लेकर विपक्ष हमलावर है। वहीं, महाराष्ट्र में भी लालटेन लेकर विरोध-प्रदर्शन किया गया। पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ राजपुरा थर्मल पावर प्लांट के बाहर धरना दिया।

बिजली कटौती का क्या असर हो रहा है?

टेक्नॉलजी के जमाने में बिजली एक तरह से लाइफलाइन बन गई है। ऐसे में अघोषित बिजली कटौती से कई तरह की परेशानियां हो रही हैं। खासकर औद्योगिक उत्पादन प्रभावित हुआ है। कई इलाक़ों में सिर्फ 3-4 घंटे ही लाइट आ रही है। किसानों को फसलों की सिंचाई करने में दिक्कत हो रही है। ग्रामीण इलाक़ों में लोग फोन भी नहीं चार्ज कर पा रहे। वर्क फ्रॉम होम करने वाले लोग भी परेशान हैं। रमजान का पाक महीना चलने की वजह से रोजा रखने मुस्लिमों को भी काफी दिक्कत हो रही है।

बिजली संकट से निपटने के लिए क्या कर रही हैं सरकारें?
राज्य सरकारें फिलहाल पावर कट के सहारे ही बिजली संकट को गहराने से रोक रही हैं। वहीं, केंद्र सरकार कोयले की उपलब्धता बढ़ाने में जुटी है। कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) अपनी सप्लाई चेन को बेहतर करने की कोशिश कर रहा है। यह प्राथमिकता के आधार पर पावर प्लांट में ट्रेन से कोयला पहुंचाएगा।

प्राइवेट कंपनियों में सिर्फ ट्रकों के सहारे कोयला पहुंचाया जा रहा है। केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने भी कोयले का उत्पादन और आपूर्ति बढ़ाने पर जोर दिया है। पावर प्लांट में कोयले का स्टॉक बढ़ाने के लिए हर रोज 20 लाख टन कोयले का उत्पादन होगा।

क्या इस संकट से बिजली की क़ीमतें भी बढ़ेंगी?
अर्थशास्त्र का सामान्य-सा नियम है- डिमांड बढ़ेगी, तो क़ीमतों में भी इजाफा होगा। पावर सेक्टर भी इस नियम का अपवाद नहीं। जो कंपनी या सरकार महंगी दर पर कोयला खरीदेगी, वह देर-सबेर बिजली का दाम ज़रूर बढ़ाएगी। छत्तीसगढ़ ने तो अप्रैल की शुरुआत में ही टैरिफ में 15 पैसे की बढ़ोतरी कर दी। अब दूसरे राज्य भी बिजली की बढ़ती डिमांड और कोयले की बढ़ती कीमतों को देखकर बिजली का दाम बढ़ाने की सोच रहे हैं। इनमें मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य भी शामिल हैं।

बिजली की किल्लत कब दूरी होगी?
बिजली संकट कब तक बना रहेगा, इस बारे में पूरे भरोसे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता। हर साल ऐसा संकट आता है और मॉनसून की शुरुआत के बाद ही ख़त्म होता है। उस वक़्त बारिश के चलते बिजली की खपत घट जाती है। नदियों का जलस्तर भी बढ़ जाता है, तो हाइड्रो पावर प्लांट भी पूरी क्षमता के साथ उत्पादन करने लगते हैं।

लेकिन हर साल बिजली संकट मई-जून में आता है। इस बार अप्रैल से झुलसाने वाली गर्मी के साथ बिजली संकट सताने लगा है। यह संकट जितनी देर तक बना रहेगा, उतना ही ज्यादा सरकारों को जनता की नाराज़गी भी झेलनी पड़ेगी। इसलिए उनकी पूरी कोशिश होगी कि पावर सप्लाई को जितनी जल्दी हो सके, दुरुस्त किया जाए।

क्या जड़ से ख़त्म हो सकता है बिजली संकट?
बिजली संकट हर साल का किस्सा है। राज्य सरकारें किसी तरह बिजली कटौती करके मौजूदा संकट से निकल जाती हैं, लेकिन अगले साल फिर वही कहानी दोहराई जाती है। भारत ही नहीं, जितने भी देश बिजली उत्पादन के लिए कोयले पर ज़्यादा निर्भर हैं, उनका साल में एकाध बार बिजली संकट से वास्ता ज़रूर पड़ता है।

यही वजह है कि सरकार ब्लैकआउट जैसे संकट को जड़ से ख़त्म करने के लिए ग्रीन एनर्जी यानी हरित ऊर्जा पर जोर दे रही है। इससे बिजली वाली परेशानी तो दूर होगी ही, कोयले से होने वाले प्रदूषण को भी कम किया जा सकेगा। केंद्र सरकार ने साल 2030 तक 280 गीगावॉट सोलर पावर पैदा करने का लक्ष्य रखा है। अगर सरकार इस लक्ष्य को हासिल करने में सफल रहती है, तो उसकी कोयले पर निर्भरता नाममात्र की रह जाएगी।’

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