Electronic trash: क्या आप अपने लैपटॉप और स्मार्टफोन के अदृश्य कचरे के बारे में जानते हैं?
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जब हम पर्यावरण पर अपने पदचिन्हों की बात करते हैं तो हमारा ध्यान घर के कचरे तक ही सीमित रहता है. लेकिन उस कचरे और प्रदूषण का क्या करें जो हमारे इस्तेमाल की चीजों को बनाने के दौरान पैदा होता है?
ज्यादातर लोगों को लगता है उन्हें मालूम कि कचरा क्या होता है. वो अपनी ब्रोक्कोली पर से उतारी गई पन्नी या उनका नया लैपटॉप जिस गत्ते के डब्बे में आया था उसी को कचरा समझते हैं. कुछ लोग यह भी समझते हैं कि वो लैपटॉप खुद जब किसी काम का नहीं रहेगा तब कचरा बन जाएगा. हर साल दुनिया में करीब दो अरब मीट्रिक टन कचरा पैदा होता है, लेकिन ये सिर्फ वो कचरा है जो हम देख सकते हैं.
डिजिटल टेक्नोलॉजी को बनाने के वैश्विक असर पर एक किताब के लेखक जॉश लेपॉस्की कहते हैं, “बतौर उपभोक्ता हमारा जिस कचरे से आमना सामना होता है, वो दुनिया के पूरे कचरे के सिर्फ दो से तीन प्रतिशत के बराबर है.” दुनिया भर के कचरे का सबसे बड़ा हिस्सा हम जिन चीजों को खरीदते हैं उन्हें बनाने में होने वाले संसाधनों के इस्तेमाल, उत्पादन, लाने-ले जाने और बिजली उत्पादन में छिपा हुआ रहता है और इसका आसानी से पता नहीं लगाया जा सकता.
इलेक्ट्रॉनिक उपकरण इस तरह के कचरे के लिए विशेष रूप से जिम्मेदार हैं. यह दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ कचरे का स्त्रोत है और अदृश्य कचरे के सबसे बड़े स्त्रोतों में से एक है. लेपॉस्की बताते हैं, “इलेक्ट्रॉनिक्स से निकलने वाला अधिकतर कचरा और प्रदूषण उन उपकरणों के लोगों के पास पहुंचने से बहुत पहले निकल चुका होता है.”
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इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बनाने में खतरनाक रसायन और ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं और बहुत पानी भी बहाना पड़ता है, लेकिन ये सब आम उपभोक्ता को दिखाई नहीं देता है और इसे परिमाणित करना भी मुश्किल है. इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में कई तरह के पुर्जे होते हैं जिनमें से अधिकतर दुनिया के अलग-अलग कोनों में बनते हैं और फिर उन्हें एक जगह लाकर जोड़ा जाता है.
बहुमूल्य धातुओं का खनन
मिसाल के तौर पर एक स्मार्टफोन के अंदर 62 धातु हो सकते हैं. एक आईफोन के कई पुर्जों में सोना, चांदी और पैलेडियम जैसे धातु भी होते हैं. इन धातुओं का मुख्य रूप से एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में उत्खनन होता है. इन्हें खदानों में से निकालना पड़ता है.
स्वीडन के कचरा प्रबंधन और रीसाइक्लिंग संगठन एवफॉल स्वेरिज ने हिसाब लगाया है कि एक स्मार्टफोन को बनाने में करीब 86 किलो और एक लैपटॉप को बनाने में लगभग 1,200 किलो अदृश्य कचरा निकलता है. इस अध्ययन की सह-लेखक एना करिन ग्रिपवॉल कहती हैं, “इसमें पत्थर, कंकड़ और धातु का मैल जैसी चीजें भी शामिल हैं. इसमें इस्तेमाल किए गए ईंधन और बिजली भी शामिल है, हालांकि खनन से संबंधित कचरे के सामने ये बहुत ही काम मात्रा का कचरा है.”
सर्वे किए गए सभी उत्पादों में ये सबसे ज्यादा है. इन उत्पादों में एक किलो बीफ और कॉटन की एक जोड़ी पतलूनें भी शामिल हैं, जो चार किलो और 25 किलो कचरा निकालते हैं.
एक गंदा उद्योग
बहुमूल्य धातुओं के खनन, कटाई, ड्रिल करना, धमाके करना और यहां से वहां ले जाने में नुकसानदेह धातुओं वाली धूल उड़ सकती है. रसायन भी उड़ कर हवा में और आस पास के पानी के स्रोतों में मिल सकते हैं. अमेरिका के इंडियाना में पर्ड्यू विश्वविद्यालय में मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर फू हाओ ने बताया, “कच्चे धातु को निकाल लेने के बाद, आपको कॉन्सेंट्रेटेड पदार्थों को अलग करना पड़ता है.
इन्हें अलग करना मुश्किल होता है, इसलिए आपको रसायन और ऊंचे तापमान का इस्तेमाल करना पड़ता है.” उन्होंने यह भी बताया कि यह जब बड़े स्तर पर करना हो तो यह विशेष रूप से जटिल हो जाता है. ठीक से निगरानी के बिना ये विषैले अंश भूजल को दूषित कर सकते हैं, घाटियों और नदी-नालों में उतर सकते हैं और मिट्टी, पौधों और पशुओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं. इस तरह ये इंसानी आबादी के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बन सकते हैं.
अमेरिका के डेलावेर विश्वविद्यालय में ऊर्जा और पर्यावरण के प्रोफेसर सलीम अली का कहना है कि इसका यह मतलब नहीं है कि बहुमूल्य धातुओं का खनन हमेशा पर्यावरण के लिए बुरा ही होता है. उन्होंने कहा, “चुनौती इसे इस तरह से करने में है जिससे पर्यावरण को नुकसान ना पहुंचे. आपको ऐसे तरीके ढूंढने हैं जिनसे ये विषैले पदार्थ ग्राउंडवाटर सप्लाई में ना पहुंचे. इसके अलावा इन इलाकों में काम करने वाले लोगों को सुरक्षात्मक उपकरण दिए जाएं ताकि वो वाष्पशील पदार्थों को सूंघने से बच सकें.”
अली का मानना है कि यह निवेश बढ़ा कर किया जा सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि एक और बेहतर उपाय यह है कि इन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बनाने के लिए और ज्यादा नवीकरणीय ऊर्जा के स्त्रोतों का इस्तेमाल किया जाए.
अमेरिका से चीन, हांग कांग और फिर वापस
लेपॉस्की कहते हैं, “कुछ इलेक्ट्रॉनिक पुर्जों को बनाने में जिन गैसों का इस्तेमाल होता है उनमें से कई “कार्बन डाइऑक्साइड से कई गुना ज्यादा शक्तिशाली होती हैं.” इनमें स्क्रीनों को बनाने में इस्तेमाल की जाने वाली फ्लोरिनेटेड ग्रीनहाउस गैसें शामिल हैं. अब अधिकतर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उत्पादन चीन, हांग कांग, अमेरिका और दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों में होता है.
अदृश्य कचरे का हिसाब लगाने में आने वाली मुश्किलों का एक कारण यह भी है कि विशेष रूप से इलक्ट्रोनिक जैसे कई आधुनिक उत्पादों की सप्लाई चेन लंबी और पेचीदा होती है. एप्पल 27 अलग अलग देशों में स्थित उसके चोटी के 200 सप्लायरों की सूची जारी करता है, लेकिन इनमें से अधिकतर सप्लायरों के ठिकाने ऐसे स्थानों पर हैं जहां विषैले प्रदूषकों पर नजर रखने वाले सार्वजनिक रजिस्टर नहीं है.
रिसाइकिल करने की सीमा
जहां तक उन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का सवाल है जिन्हें हम फेंक देते हैं, आजकल इनमें से सिर्फ 17.4 प्रतिशत इकट्ठा और रिसाइकिल किए जाते हैं. लेकिन लेपॉस्की का कहना है कि अगर सभी उपकरणों को भी सफलतापूर्वक रिसाइकिल कर लिया जाए तो भी उससे उत्पादन के समय पैदा हुए कचरे और प्रदूषण की भरपाई नहीं की जा सकती. वो कहते हैं कि इससे खनन के कचरे पर भी सिर्फ हल्का सा असर पड़ेगा.
हां ई-वेस्ट के रिसाइकिल ना होने से समस्या का एक हिस्सा रेखांकित जरूर होता है. हाओ के अनुसार, “अगर आप इलेक्ट्रॉनिक्स को देखें, तो उन्हें फिर से इस्तेमाल करने या फिर से बनाने के लिए डिजाईन ही नहीं किया जाता है.” एप्पल ने प्रण लिया है कि वो 2030 तक 100 प्रतिशत कार्बन न्यूट्रल हो जाएगी. कंपनी ने ई-वेस्ट को लेकर बढ़ रही चिंताओं को देखते हुए यह भी कहा है कि वो हर आईफोन के साथ इयरफोन और चार्जर नहीं बेचेगी.
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उसने अपने उत्पादन में रिसाइकिल किए हुए पदार्थों के इस्तेमाल को बढ़ाने का भी वादा किया है. लेकिन हाओ का कहना है कि तकनीक में तेजी से बदलाव हो रहे हैं और इन्हें जटिल और मुश्किल से अलग करने वाले एक उपकरण में डालने से इन लक्ष्यों को हासिल करना एक चुनौती बन जाता है. वो कहते हैं कि आपका सेल फोन कुछ ही सालों में पुराना हो जाएगा और इस वजह से फिर से इस्तेमाल करना और फिर से बनाना लगभग असंभव हो जाता है.
चीन का चांग ई-5 यान चंद्रमा की सतह से पत्थर और मिट्टी के नमूने लेकर पृथ्वी पर लौट आया है.
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