By | February 27, 2022
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Russia Ukraine War की तरह क्या भारत भी कर दे POK पर हमला? जानिए मौजूदा हालात से देश के बजट पर क्या पड़ेगा असर

कुछ भारतीय यूक्रेन (Ukraine) पर हमले को लेकर रूस (Russia) का पक्ष ले रहे हैं। उन्हें इस हमले में कुछ भी बुरा नहीं दिखाई दे रहा है। लोग सवाल कर रहे हैं कि हमें भी क्यों ना रूस की तरह ही पीओके (POK) पर हमला कर देना चाहिए? इसका जवाब यह है कि हम रूस जितना सक्षम नहीं हैं। रूस के पास हमसे कई अधिक ताकतवर सेना है।

वहीं, रूस के विपरीत हमारा मुकाबला परमाणु हथियारों से संपन्न सेना से होगा जिसके पास सुपर पावर चीन का सपोर्ट भी है। रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War) की बात करें तो यूक्रेन के पास न तो परमाणु हथियार हैं और ना ही नाटो (NATO) की सेना उसके साथ लड़ रही है। इसके अलावा, क्या आप सोच सकते हैं कि रूस-यूक्रेन की लड़ाई का भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा?

रूस और यूक्रेन की लड़ाई (Russia Ukraine War Latest Update) वैश्विक बाजार पर संकट के काले बादल लेकर आई है। रूस क्रूड ऑयल (Crude Oil Prices) और गैस का प्रमुख उत्पादक देश है। साथ ही रूस और यूक्रेन कृषि उत्पाद और मेटल का भी बड़ी मात्रा में निर्यात करते हैं। रूस पर अमेरिका और यूरोपीय देशों के प्रतिबंध इस सप्लाई चेन को बाधित कर देंगे, जिससे वैश्विक बाजार में कई वस्तुओं की आपूर्ति प्रभावित होगी। यह महंगाई को नए स्तर पर ले जा सकता है। आइए जानते हैं कि भारत पर रूस-यूक्रेन की लड़ाई का क्या असर पड़ेगा और इससे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Sitharaman) का बजट कैसे गड़बड़ा सकता है।

तेल की कीमतों में लग सकती है आग
पेट्रोल-डीजल की कीमतें (Petrol-Diesel Prices) बढ़ते ही कई सारी वस्तुओं के भाव बढ़ जाते हैं और फिर महंगाई दर को संभालना मुश्किल हो जाता है। रूस-यूक्रेन की लड़ाई से भारत को सबसे बड़ा खतरा यही है। ब्रेंट ऑयल की कीमत इस समय 94.51 डॉलर प्रति बैरल है। हाल ही में यह 101 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई थी। रूस क्रूड ऑयल का एक बड़ा निर्यातक देश है। कई यूरोपीय देश अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर हैं। इसमें गैस आपूर्ति अहम है। रूस से क्रूड ऑयल की सप्लाई बाधित रहने से कच्चे तेल के वैश्विक भाव में लगातार बढ़ोत्तरी देखने को मिल सकती है जिसका सीधा असर भारत पर भी पडे़गा।

बिगड़ जाएगा बजट का गणित
पोट्रोलियम मिनिस्ट्री के अनुसार, अगले वित्त वर्ष में देश में पेट्रोलियम उत्पादों की मांग 214.5 मिलियन टन पहुंचने के आसार हैं। ऐसा होता है तो यह खपत उच्चतम स्तर पर होगी जो 2021-22 के संशोधित अनुमानों से 5.5 फीसदी अधिक होगी। भारत दुनिया में पेट्रोलियम पदार्थों (petroleum products) का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है। साथ ही, अगले वित्त वर्ष में देश में पेट्रोल-डीजल की खपत रेकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचने का अनुमान है। हमारा देश अपनी कुल जरूरत का 85 फीसदी तेल बाहर से मंगाता है। कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी निश्चित रूप से देख का आयात बिल बिगाड़ देगी और बजट का गणित गड़बड़ा जाएगा।

जीडीपी ग्रोथ पर असर

रिसर्च फर्म नोमुरा (Nomura) की रिपोर्ट के अनुसार, क्रूड ऑयल और खाद्य वस्तुओं की कीमतों (Food Prices) में लगातार बढ़ोतरी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं पर काफी बुरा असर डालेंगी। बढ़ती महंगाई, कमजोर चालू खाता, बढ़ता घाटा और आर्थिक ग्रोथ के प्रभावित रहने से मुश्किल और बढ़ जाएगी। रिपोर्ट में कहा गया कि इस स्थिति में भारत, थाइलैंड (Thailand) और फिलीपींस (Philippines) को सबसे अधिक नुकसान होगा।

शुद्ध रूप से तेल आयातक होने के चलते भारत को भारत को भी काफी नुकसान होगा क्योंकि तेल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि से उपभोक्ताओं और कारोबारों पर काफी बुरा प्रभाव पडे़गा। हमारा अनुमान है कि तेल की कीमतों में प्रत्येक 10 फीसद उछाल के कारण जीडीपी ग्रोथ (GDP Growth) में करीब 0.20 पर्संटेज पॉइंट की गिरावट आएगी।’

महंगाई बढ़ेगी
क्रूड ऑयल की कीमतों में इजाफे से पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ेंगी। इसका सीधा असर उपभोक्ताओं और कारोबारों पर पड़ेगा। पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने से ट्रांसपोर्ट महंगा हो जाएगा और कई वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाएंगी। बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि क्रूड बास्केट में 10 प्रतिशत की स्थायी बढ़त WPI आधारित महंगाई में 1.2 फीसद और CPI आधारित महंगाई में 0.3 से 0.4 फीसद की बढ़ोतरी कर सकती है।

आरबीआई के लिए महंगाई दर को संभालना चुनौती
हाल ही में मौद्रिक नीति समिति की बैठक के बाद आरबीआई (RBI) गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि वित्त वर्ष 2023 में मुद्रास्फीति के 4.5 फीसद रहने का अनुमान है। हालांकि, रूस-यूक्रेन लड़ाई से मुद्रास्फीति के ऊपर जाने का जोखिम काफी बढ़ गया है। ऐसे में आरबीआई के लिए महंगाई को काबू करना बड़ी चुनौती होगी।

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