volcanic eruptions: जानिए कैसे ज्वालामुखी विस्फोटों के कारण हुए इस बदलाव ने ला दिया था महाविनाश
इस समय पृथ्वी (Earth) एक ग्रीनहाउस काल (Greenhouse Period) से गुजर रही है. लेकिन करीब 12 करोड़ साल पहले पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन (Climate change) की एक बहुत धातक घटना हुई थी. ज्वालामुखी विस्फोटों (Volcanic Erruptions) कारण हुई महासागर अम्लीकरण की इस घटना की वजह से पृथ्वी एक लंबे समय के लिए एक ग्रीनहाउस का (Greenhouse Period) में चली गई थी जिससे महासागरों में ऑक्सीजन की भारी कमी हो गई थी और पृथ्वी पर एक महाविनाश (Mass Extinction) की स्थिति बन गई थी.
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OAE घटना की अहमियत
इस घटना को ओसियानिक एनोक्सिक इवेंट यानि OAE कहा जाता है. पानी में हुई ऑक्सीजन की कमी से छोटे पैमाने पर फिर भी पर्याप्त विशाल विनाश हो गया था जिसका असर पूरी पृथ्वी पर देखने को मिला. क्रिटेशियस युग में इस काल के दौरान समुद्र में पाए जाने सूक्ष्म प्लवक या नैनोप्लैंकटोन (Nanoplankton) प्रजातियों के परिवार ही गायब हो गया.
लाखों सालों तक विस्फोट
नौनोप्लैक्टोन के जीवाश्म में कैल्शियम और स्ट्रोन्टियम आइसोटोप की बहुतायत मापने के बाद नॉर्थवेस्टर्न पृथ्वी वैज्ञानियों ने यह नतीजा निकाला कि ओनटोंग जावा प्रायद्वीप के लार्ज इग्नियस प्रोविंस (LIP) ने सीधे OAE1a को शुरु किया था. ओनटोंग जावा एलआईपी अलास्का के आकार था. जहां 70 लाख साल तक विस्फोट होता रहा. यह अब तक की सबसे विशाल LIP घटना मानी जाती है. इस दौरान इससे टनों की मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में गया था जिससे पूरी पृथ्वी एक ग्रीनहाउस काल में चली गई थी. इससे महासागरों का पानी अम्लीय होने के साथ ही ऑक्सीजन की कमी से भी जूझने लगा था.
इतिहास से भविष्य की ओर
इस अध्ययन के प्रथम लेखक और नॉर्थवेस्टर्न के पीएचडी छात्र ज्युयुअन वांग ने बताया, “हम ग्रीनहाउस काल का अध्ययन करने के लिए समय में पीछे इसलिए जाते हैं क्योंकि इस समय पृथ्वी एक दूसरे ग्रीनहाउस काल से गुजर रही है. भविष्य में झांकने के लिए हमें इतिहास को समझना ही होगा.
पुरातन ओसीन एनोक्सिक घटनाओं के अध्ययन का प्रयास
यह अध्ययन हाल ही में जियोलॉजी जर्नल में ऑनलाइन प्रकाशित हुआ था. यह पहला अध्ययन है जिमसें स्थिर स्ट्रोटन्टियम आइसोटोप के मापन का पुरातन ओसीन एनोक्सिक घटनाओं के अध्ययन लिए उपयोग में किया गया है. नौनोप्लैंटोन सहित बहुत सारे समुद्री जीव अपनी खोल कैलेशियम कार्बोनेट से बनाते हैं. जो चॉक, चूनापत्थर और एंटाएसिड टैबल्ट में मिलता है. जब कार्बन डाइऑक्साइड समुद्री पानी में घुल जाती है तो वह एक कमजोर एसिड बना लेती है जो कैल्शियम कार्बोनेट के निर्माण में बाधा डालने लगती है और यहां तक कि मौजूदा कार्बोनेट को भी घोलने लगती है.
महासागरों के अवसादों का अध्ययन
पूर्व क्रिटेशियस काल के दौरान पृथ्वी की जलवायु का अध्ययन करने के लिए नॉर्थवेस्टर्न शोधरकर्ताओं ने प्रशांत पहाड़ियों के बीच में से ली गई 1600 मीटर लंबी अवसाद का परीक्षण किया. ये कार्बोनेट उथले पानी में बने करीब 12.7 करोड़ से 10 करोड़ साल पहले कटिबंधीय वातावरण में बने थे. लेकिन अब ऐसे अवासाद गहरे महासागर में पाए जाते हैं.
कार्बोनेट कार्बन के भंडार
शोधकर्ताओं का कहना है कि पृथ्वी के कार्बन चक्र को देखने पर हम पाते हैं कि कार्बोनेट कार्बन के विशाल भंडार हैं. जब महासागरों में एसिड आता है तो वे कार्बोनेट को पिघला देते हैं. इससे उन जीवों के कार्बोनेट की खोल, हड्डी, आदि बनाने की प्रक्रिया में असर डालता है. आज यह इंसानी गतिविधितियों की वजह से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ने से ऐसा हो रहा है.
स्ट्रोन्टियम और कैल्शियम के आइसोटोप
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उस समय की स्थिति जानने के लिए स्ट्रोन्टियम के स्थिर आइसोटोप का विश्लेषण किया जो कार्बोनेट जीवाश्म में मिलता है. उन्होंने कैलेशियम और स्ट्रोन्टियम आइसोटोप कैल्शियम कार्बोनेट के निर्माण के समय एक ही तरह से बर्ताव करते हैं. लेकिन जीवाश्म बनने के बाद होने वाले बदलावों में ऐसा नहीं होता है. इसी से शोधकर्ताओं के OAE1a के दौरान समुद्र में हुए अम्लीकरण बदलाव की जानकारी मिल सकी.
अपने अध्ययन से शोधकर्ताओं ने ओन्टोंग जावा प्रायद्वीप के एलआईपी प्रस्फोटों का महासागर अम्लीकरण से गहरा संबंध पाया. शोधकर्ताओं को लगता है कि आज का ग्लोबल वार्मिंग महासागरों में अम्लीकरण की स्थिति पैदा कर पृथ्वी को महाविनाश की ओर ले जा सकता है.
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