By | June 23, 2021
World music day 2021

World music day 2021: जब दुनिया में बोलना भी शुरू नहीं हुआ था, उससे पहले से है संगीत | आज विश्व संगीत दिवस (World Music Day) है. जब मानव ने हजारों साल पहले बोलना भी नहीं सीखा था, तब संगीत उसके भावों के जरिए दुनिया में बिखरने लगा था. उसके जो आवाज (Sound) थी, उससे गले में अलग अलग भावों पर जब वो अलग सुर निकालता था तो ये संगीत की शुरुआत (Beginning of Music) थी. संगीत सबसे पहले हमारा दुख-सुख का साथी बना.

World music day 2021: कहां से आया संगीत? कैसे आया? किसने बनाया? संगीत तो हमेशा से दुनिया में था, तब से ही जब से दुनिया बनी.जब हमारे पास भाषाएं नहीं थीं. हमें बोलना नहीं आता था. संगीत का साथ शायद तब से है.जब दुनिया में आदमी आया.तब उसके गले में आवाज तो थी लेकिन इसका इस्तेमाल कैसे करे, उसे इसका पता नहीं था.जब वो खुश होता तो गले से मधुर और मीठी आवाज निकालने लगती.इसमें कुछ लय होती,

जब नाराज होता तो आवाज का अंदाज अलग होता. शुरुआती मानव को तभी से जीवन के हर रंग को आवाजों में पिरोना आ गया…यहीं से संगीत का जन्म हुआ..यानि जब हमें बोलना भी नहीं आता था तब से संगीत हमारे जीवन में था..

संगीत तब हमारे सुख दुख का साथी था. हमारी भावनाओं का इजहार का भी माध्यम था. यही सिलसिला जब आगे बढ़ा तो इन आदिम मानव ने इन आवाजों को संगीतमय शैली में ढालकर नृत्य की शैली भी ईजाद कर ली. आदिम मानव मुंह से अजीब तरह की लयपूर्ण आवाजें निकालते. सुख-दुख में अजीबोगरीब तरीके से डांस करते.

संगीत में जरूरी नहीं शब्दों की जरूरत हो ही.लयों की ध्वनिपूर्ण अदायगी ने संगीत की परंपराओं को सही मायनों में जन्म दिया. इन लयों और संगीत की समझ में हमारे आदिम काल के पूर्वजों और उनके बाद सभ्यता की ओर कदम बढाने वाले खानाबदोश कबीलों में आ चुकी थी.

फिर आए संगीत के यंत्र : World music day 2021
आगे बढ़ती जीवन यात्रा में जब मनुष्य को भाषाएं मिलीं. गले की आवाजें महज ध्वनि नहीं बनकर शब्द और अक्षर में ढलीं तो संगीत की भी नई यात्रा शुरू हुई..फिर जिस तरह मनुष्य सभ्यता के सोपान पर आगे बढ़ता रहा. जीवन बदलता गया. उसी तरह संगीत को लगे पंख भी नई नई उडान भरते गये.

इसके बाद आये वो यंत्र और साजोसामान…जिन्होंने संगीत को और रवानगी दी..यानि संगीत के स्वरों को आवाज देने के लिए गले के साथ कुछ और सामान भी हमारे आदिम काल के पूर्वजों को मिल गये. करीब 20हजार साल पहले के अवशेष इस ओर संकेत भी करते हैं.

आदिम युग में होता था बांसुरी और ड्रम का इस्तेमाल : World music day 2021
आदिम युग की गुफाओं के पास पुरातत्व वैज्ञानिकों को हड्डी की बांसुरी मिली है, जिससे पता लगता है कि पाषाण काल में पोली हड्डी का इस्तेमाल बांसुरी के रूप में किया गया होगा, फिर लकड़ी की बांसुरी बनाई गई होगी. माना जाता है कि मानव का पहला संगीत यंत्र यही हड्डी वाली बांसुरी थी. इसी दौरान उसने कहीं पेडों के खोखले गोलाकार तनों को काटकर जब इस पर चमड़े का खोल चढाया होगा तो इस पर थाप देते ही उसे अदभुत आवाजें सुनने को मिली होंगी.

पाषाणकाल में जलतंरग भी था प्रचलित : World music day 2021
बाद में यही बांसुरी और थाप देने वाले ढोल उसकी संगीत के शुरुआती साथी बने. बांसुरी और ड्रम उस दौर में दुनिया के अलग अलग क्षेत्रो में अलग तरह से विकसित हुए. हर महाद्वीप में बांसुरी और ड्रम के आकार प्रकार भी अलग थे. कहीं बासुरी बहुत छोटी थी तो कहीं दो मीटर लंबी.कहीं ड्रम छोटे आकार का तो कहीं बेहद विशालकाय…एक और संगीत यंत्र भी इस पाषाण काल में खासा प्रचलित था तो वो जलतरंग जैसा संगीत का यंत्र था,

जिसके हर छोर से संगीत के स्वरों की अलग तरह की लहरें निकलती थीं. आस्ट्रेलिया के जनजातीय इलाकों में अब भी दो-ढाई मीटर की बांसुरी जबरदस्त फूंक मारकर बजाई जाती है, इसे वहां डिडगेरीडू कहा जाता है.

हाथी की सूंड से बनी थी शुरुआती बांसुरी : World music day 2021
बताया जाता है कि हड्डी की जो शुरुआती बांसुरी बनी वो उस विशालकाल हाथियों के सूंड से बनाई जाती थी. पाषाण काल में ज्यों ज्यों ध्वनि का महत्व हमारे आदिम पूर्वजों को पता चला होगा, तब उन्होंने तमाम चीजों से आवाजें निकालकर उन्हें संगीतमय बनाने की कोशिश की होगी. उसमें पत्थर से लेकर लकड़ी आदि सभी शामिल रहे होंगे.

हर क्षेत्र में विकसित हुईं संगीत की अलग शैलियां : World music day 2021
हर क्षेत्र में संंगीत का अलग ढंग से विकास हुआ. उस पर अलग छाप पड़ी. उसकी अलग शैली और खासियतें प्रचलित हुई. दुनियाभर में संगीत की हजारों नहीं बल्कि लाखों शैलियां हैं. हर सौ कोस पर संगीत पर इलाके का पानी चढ़ा, उसे अलग बोली और अंदाज में पिरोया गया. अक्सर हर इलाके ने अपने संगीत के खास यंत्र भी विकसित किये.

सिंधू घाटी की नृत्य बाला मुद्रा की कांस्य प्रतिमा : World music day 2021
अपने देश में भी संगीत की परंपरा प्रागैतिहासिक काल जितनी पुरानी है. सिंधु घाटी काल खुदाई में एक एक नृत्य बाला की मुद्रा में कांस्य की प्रतिमा मिली. यानि करीब ईसा से करीब तीन हजार पहले संगीत हमारे जनमानस में बसा हुआ था.जब वैदिक काल की शुरुआत हुई तो संगीत भजन और मंत्रों के रूप में ढलकर सामने आया.

उस युग में हमारे समाज में संगीत से उपजी काव्यात्मकता इस कदर चरम पर थी कि हमारे सबसे महान ग्रंथ रामायण और महाभारत महाकाव्य के रूप में निकल कर आये जो गद्य नहीं बल्कि पद्य थे. ऋगवेद, यजुर्वेद सभी में संगीत पर खासा प्रकाश डाला गया. इसमें संगीत के वाद्य यंत्रों, उत्पत्ति और बजाने के तौर तरीकों का विस्तार से वर्णन किया गया है, राग हमारी सभ्यता में शुरू से हैं.

शिव और सरस्वती भारतीय संगीत के आदिप्रेरक : World music day 2021
भारतीय संस्कृति में संगीत के आदिप्रेरक शिव और सरस्वती हैं. माना जाता है कि संगीत का ज्ञान हमारे पूर्वजों, महर्षियों और मनीषियों को सीधे ईश्वर से हासिल हुआ था. पांचवीं शताब्दी में मतंग मुनि ने संगीत के बारीक पहलूओं पर वृहददेखी लिख दिया. प्राचीन काल में भारतीय संगीत को दिव्य और अलौकिक माना जाता था. धर्म, आध्यात्म और साधना के वातावरण में उसका विकास हुआ. मंदिरों और आश्रमों में उसका पालन-पोषण. मंदिर के अलावा राजमहल और राजदरबार भी संगीत के मुख्य केंद्र बने.

उस युग में हमारे समाज में संगीत से उपजी काव्यात्मकता इस कदर चरम पर थी कि हमारे सबसे महान ग्रंथ रामायण और महाभारत महाकाव्य के रूप में निकल कर आये जो गद्य नहीं बल्कि पद्य थे. ऋगवेद, यजुर्वेद सभी में संगीत पर खासा प्रकाश डाला गया. इसमें संगीत के वाद्य यंत्रों, उत्पत्ति और बजाने के तौर तरीकों का विस्तार से वर्णन किया गया है, राग हमारी सभ्यता में शुरू से हैं.

शिव और सरस्वती भारतीय संगीत के आदिप्रेरक : World music day 2021
भारतीय संस्कृति में संगीत के आदिप्रेरक शिव और सरस्वती हैं. माना जाता है कि संगीत का ज्ञान हमारे पूर्वजों, महर्षियों और मनीषियों को सीधे ईश्वर से हासिल हुआ था. पांचवीं शताब्दी में मतंग मुनि ने संगीत के बारीक पहलूओं पर वृहददेखी लिख दिया. प्राचीन काल में भारतीय संगीत को दिव्य और अलौकिक माना जाता था. धर्म, आध्यात्म और साधना के वातावरण में उसका विकास हुआ. मंदिरों और आश्रमों में उसका पालन-पोषण. मंदिर के अलावा राजमहल और राजदरबार भी संगीत के मुख्य केंद्र बने.

वो संगीत का सुनहरा युग  : World music day 2021
भारतीय संगीत का सुनहरा युग अकबर के शासनकाल में आया, जिसके दरबार में एक दो नहीं बल्कि 36 संगीतज्ञ थे. जिसमें बैजु बावरा, तानसेन, रामदास और तानसेन जैसे महान गायक शामिल थे. बादशाह अकबर को घंटों संगीत सुनने की आदत थी. शाहजहां भी संगीतकारों की बहुत कद्र करते थे बल्कि वह खुद भी खासा अच्छा गाते थे.

मुगल साम्राज्य के अंतिम दिनों में बादशाह मुहम्मद शाह जफर के दरबार में संगीत की चहल पहल होती थी.
अंग्रेजों के शासनकाल में संगीत का सुहाना सफर थोड़ा प्रभावित जरूर हुआ लेकिन सुर-संगीत का जादू फिर छाने लगा है. संगीत का रूहानी अहसास पंख फैलाये फिर नई ऊंचाइयां छूने को बेताब लगता है.

 

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