Startup: business ideas in hindi | कुछ लोग ऐसे होते हैं तो सास-बहू की आदर्श जोड़ी बन जाते हैं. आज हम आपको एक ऐसी ही जोड़ी के बारे में बताने वाले हैं, जो न केवल सास-बहू की आदर्श जोड़ी है, बल्कि तजुर्बा और नई सोच का मिला-जुला रूप भी है. जिन्होंने साथ में एक स्टार्टअप शुरू किया और आज बन गई हैं हजारों महिलाओं की प्रेरणा.
Startup रंजीता पठारे, बेंगलुरु
फिल्मों, किस्से और कहानियों में सास और बहू को अक्सर एक दुसरे को ताना देते, एक दुसरे की बुराई करते दिखाया जाता है. असलियत में भी कई जोड़ी ऐसी ही होती है. लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं तो सास-बहू की आदर्श जोड़ी बन जाते हैं.
आज हम आपको एक ऐसी ही जोड़ी के बारे में बताने वाले हैं, जो न केवल सास-बहू की आदर्श जोड़ी है, बल्कि तजुर्बा और नई सोच का मिला-जुला रूप भी है. जिन्होंने साथ में एक स्टार्टअप शुरू किया और आज बन गई हैं हजारों महिलाओं की प्रेरणा.
सास-बहू का स्टार्टअप
भाई-बहन, पिता-बेटी, भाई-भाई और यहाँ तक की मां-बेटे के स्टार्टअप के बारे में तो आपने सुना होगा, लेकिन सास-बहू के स्टार्टअप के बारे में कम ही सुनने को मिलता है. ऐसी सास बहू जिहोने साथ में काम शुरू करके एक मिसाल कायम कर दी है.
भा गई रंग-बिरंगी पेंटिंग्स
बिहार के दरभंगा की रूचि झा ने अपनी सास रेणुका कुमारी के साथ मिलकर अपनी धरोहर को लोगों तक पहुंचाने का काम शुरू किया. जिसमें उन्हें भारी सफलता मिली. कभी पेशे से सक्सेसफुल इन्वेस्टमेंट बैंकर रही रूचि झा जब अपने गाँव पहुंची तो उन्होंने लोगों को मिथिला पेंटिंग्स बनाते देखा.
जो उन्हें भा गई. घरों के बाहर रंग-बिरंगी पेंटिंग्स और अन्य वस्तुओं पर उकेरी गई कला को देखकर उनके मन में नया विचार आया. बिहार में कई जगह इन चित्रों से घरों को सजाया जाता है.
सास-बहू की अनोखी जोड़ी
गाँव की धरोहर और अमूल्य कला को उन्होंने देश –विदेश के कोने-कोने में पहुंचाने का मन बनाया. चूँकि उनकी सास रेणुका कुमारी भी इस कला की कयाल थी. दरभंगा में रह रही रेणुका कुमारी कभी वनस्पति विज्ञान की प्रोफ़ेसर थीं. जिनकी मधुबनी की पेंटिंग में पहले से ही रूचि रही है.
वे इस कला से जुडी कई बारियों को जानती थी. सास-बहू दोनों ने एक जैसे अपने इंटरेस्ट को देखते हुए नया काम शुरू किया. जिसके लिए रूचि झा ने अपनी अच्छी खासी नौकरी छोड़ दी.
आई-मिथिला की शुरुआत
रुचि ने अपने प्रोफेशनल नॉलेज, एक्सपीरियंस और शिक्षा की बदौलत बाजार में रिसर्च करना शुरू कर दिया. जिसके बाद साल 2016 में उन्होंने आई-मिथिला हैंडीक्राफ्ट्स और हैंडलूम प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की. जिसका उद्देश्य न केवल मिथिला की कला को आगे बढ़ाना था, बल्कि साथ ही में वे उन कलाकारों को भी पहचान और उनका हक़ दिलाना चाहती थी, जो उन्हें नहीं मिल रहा था.
शुरुआत में आई परेशानी
रुचि झा का कहना है कि जरुरी नहीं सभी काम की शुरुआत धमाकेदार हो. सफलता के लिए इन्तजार भी करना पड़ता है. जैसे उन्हें करना पड़ा. शुरुआत में ज्यादा ग्राहक उनसे नहीं जुड़ते थे. वहीं गाँव के लोगों को इस काम के बारे में समझाना भी आसान नहीं था क्योंकि अधिकतर लोग मैथिलि ही बोलते थे.
लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने गाँव की कला को आगे बढ़ाना शुरू किया. ‘imithila.com’ नाम से एक वेबसाईट की शरूआत की. जहाँ पर न केवल पेंटिंग बल्कि मधुबनी की कला से जडित साड़ियाँ, कुर्ते, सजावट का सामान के साथ ही घर में उपयोग होने वाली तमाम वस्तुओं पर कला उकेर कर बेचना शुरू किया.
हार नहीं मानी
रूचि और उनकी सास रेणुका का मानना है कि किसी भी काम की शुरुआत करने के बाद हार नहीं मनानी चाहिए. जब उन्होंने काम शुरू किया था तब बाहर के लोगों के अलावा घर में भी कई लोगों ने नाराजगी जताई.
क्योंकि साल 2016 में भी महिलाओं को वक्त अनुकूल नहीं था, जितना अब हो गया. लेकिन धीरे-धीरे मेहनत रंग लाइ और लोगों को सामान पसंद आने लगा. जिसके बाद परिवार और समाज का भी साथ मिला.
कैसे संभलता है सारा काम
आई-मिथिला का काम रुचि और रेणुका दोनों संभालती है. रूचि दिल्ली में रहकर काम की मार्केटिंग करती है. देश-विदेश में लोगों को इस कला की जानकारी देती है. सोशल मीडिया का उपयोग करके अपने व्यापार को आगे बढ़ाने के लिए काम करती हैं.
वहीँ रेणुका दरभंगा में रहकर कलाकारों को काम समझाती है. उनसे कोऑर्डिनेट करती हैं. साथ ही सास बहू दोनों मिलकर फैशन और घर में उपयोग होने वाली नई-नई वस्तुओं के निर्माण की योजना बनाती है.
सरकार से मिली मदद
महिलाओं की डिमांड को समझते हुए आई-मिथिला पर महिलाओं के लिए अधिक सामानों को रखा गया है. इस काम में कई लोगों को रोजगार मिला. जिन कलाकारों को पहले न ही पहचान मिली थी और न ही पैसा उन्हें अब उनकी कला के बदले पैसा भी मिल रहा है.
इससे 100 से अधिक परिवारों को फायदा मिला है. सास-बहू के इस काम की सरकार भी तारीफ़ कर चुकी है. सरकार की ओर से उनके वेंचर को मदद मिल चुकी है.
मिल चुके हैं कई अवॉर्ड
सास-बहू की इस अनोखी जोड़ी को अब तक कई अवॉर्ड मिल चुके हैं, जिसमें सुपर स्टार्टअप अवॉर्ड भी शामिल है. दोनों को कई कार्यक्रमों में बतौर चीफ गेस्ट भी बुलाया जाता है. स्कूल कॉलेज में भी उन्हें बच्चों को मोटिवेट करने के लिए आमंत्रित किया जाता है.
महिलाओं के लिए प्रेरणा
रूचि झा और रेणुका कुमारी कई महिलाओं को आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है. कुछ नया करने के लिए प्रेरित करती हैं. उनका मानना है कि घर से जिन महिलाओं का बाहर निकलना मुश्किल होता है उन्हें लिए घर से काम करने के भी कई विकल्प होते हैं. बस उन विकल्पों को पहचान कर काम शुरू करना जरूरी होता है.
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