By | February 21, 2021

प्रेम (Love) में पड़ने का भी एक विज्ञान (Science) है और इसकी स्थितियों को खास तरह के रसायन यानि हारमोन (Hormones) बनाते हैं.

Love: कई लोगों का तो यहां तक मानना है कि प्रेम की विज्ञान में कोई जगह नहीं हैं या फिर प्रेम विज्ञान (Science) के लिए बना ही नहीं. लेकिन वैज्ञानिकों (Scientists) ने अपने शोध में प्रेम विषय को भी अनछुआ नहीं रखा है. बल्कि वैज्ञानिकों ने प्रेम की एक वैज्ञानिक अवधारणा तक बना रखी है. आइए जानते हैं विज्ञान पहली नजर के प्यार को किस नजरिए से देखता है.

तीन रसायनों की भूमिका
प्यार में पड़ने को लेकर वैज्ञानिकों का मनोविज्ञान, शरीरविज्ञान, के नजरिए से विश्लेषण किया है. इसमें उन्होंने समय के साथ होने वाले बदालव को भी शामिल किया है. प्रेम की शुरुआत के बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि इसे प्रेरित करने में तीन रसायनों की भूमिका होती है. नोराड्रेनालाइन , डोपामाइन और फेनाइलइथाइलामाइन दिमाग में प्रेम के प्रति भावों को सक्रिय करते हैं.

यूं होता है असर
नोराड्रेनालाइन का कमा शुरुआती भावों का उकसाने या शुरू करने में भूमिका निभाते हैं. इससे एड्रेनालाइन बनने लगता है और दिल की धड़कन तेज हो जाती है हथेली पर पसीना आने जैसे लक्षण दिखने लगते हैं. इसके बाद दूसरा कैमिकल डोपामाइन पैदा होने से व्यक्ति को अच्छा महसूस होता है.

प्रेम के ये तीन चरण
तीसरी स्थिति तब आती है जब फेनाइलइथाइलामाइन रिलीज होता है और व्यक्ति को अजीब सा महसूस होने लगता है. लेकिन इन भावनाओं के पीछे का जीवविज्ञान क्या है.  वैज्ञानिको ने प्रेम में होने की स्थिति को तीन चरणों में बांटा है. पहला है आसक्ति जिसे अंग्रेजी में लस्ट कहते हैं जो पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन और महिलाओं में ओस्ट्रोजन के स्तरों से संचालित होते हैं. दूसरा है आकर्षण यह बिलकुल उसी तरह के भाव पैदा करती है जब किसी नशा करने वाला व्यक्ति तो शराब या ड्रग्स की तलब लगती है.

अन्य स्तनपायी जीवों में भी होता है ऐसा
अंतिम चरण में लगाव (Attachment) होता है जब व्यक्ति प्रेम करने वाले से नजदीकी से जुड़ता है और उसके साथ मिलकर लंबी योजनाएं बनाने लगता है. प्रसिद्ध मानवशास्त्री डॉ हेलन फिशर ने प्रेम की इन तीनों स्थितयों की व्याख्या की है. डॉ फिशर के अनुसार आसक्ति के स्थिति में शरीर टेस्टोस्टेरोन या ओस्ट्रेजन का बढ़ना पृथ्वी के दूसरे स्तनपायी जीवों की तरह ही होता है.

ऐसे पैदा होते हैं प्रेम के लक्षण
दूसरी स्थिति में व्यक्ति में बहुत ज्यादा खुशी के भाव पैदा होते हैं और दिमाग में बहुत सारे कैमिकल्स पैदा होते हैं जिसमें खुशियों का अहसास कराने वाला डोपामाइन, लड़ो या बच निकलो वाला भाव पैदा करने वाला एड्रेनालाइन और चौकन्ना होने का भाव पैदा करने वालारोरेपाइनफ्रराइन इंसान में लत की तरह का प्रेम का भाव पैदा करते हैं. एड्रेनालाइन खास तौर पर गाल को शर्म से लाल करने, हथेलियों में पसीना  और दिल की धड़कन को बढ़ाने का काम  करते हैं जब व्यक्ति पहली बार किसी से मिलने पर प्रेम महसूस करता है.

और भी होते हैं कारक
तीसरी अवस्था यानि लगाव में डोपामाइन और नोरिपाइनफ्राइन की जगह ऑक्सीटोसिन ले लेता है. ये हारमोन तो कार्य करते हैं लेकिन इनके अलावा भी बहुत सारे कारक ऐसे होते हैं जो यह निर्धारित करते हैं कि व्यक्ति को किससे प्रेम हो सकता है.

बहुत कम लोग जानते हैं हम खास तरह की गंध निकालते हैं. हारमोने की तरह फेरोमोन्स भी रसायन ही होते हैं जो हमारे शरीर के बाहर पसीने और शरीर के द्रव्यों में रहते हैं. वैज्ञानिक तौर पर पाया गया है कि ये अवचेतन के स्तर पर शुरुआती आकर्षण की वजह बनते हैं. इसके अलावा एक जैसे दिखना, समान मूल्य और विश्वास भी आकर्षण का कारण होते हैं.

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