अरुणाचल प्रदेश पर क्यों दावा करता है चीन ? arunaachal pradesh par kyon daava karata hai chin
arunaachal pradesh par kyon daava karata hai chin : भारत चीन सीमा विवाद में चीन का अरुणाचल प्रदेश पर भी दावा करना आपने कई बार सुना होगा कई न्यूज़ चैनलो पर खबरे भी पड़ी होंगी , लेकिन आखिर वजह क्या है की चीन अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता है ,अरुणाचल प्रदेश को समाहित करते हुए भारत की संप्रभुता को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली हुई है। अंतरराष्ट्रीय मानचित्रों में अरुणाचल को भारत का हिस्सा माना गया है। चीन, तिब्बत के साथ अरुणाचल प्रदेश पर भी दावा करता है और इसे दक्षिणी तिब्बत कहता है। शुरू में अरुणाचल प्रदेश के उत्तरी हिस्से तवांग को लेकर चीन दावा करता था। यहां भारत का सबसे विशाल बौद्ध मंदिर है।
अब सवाल उठता है की आखिर विवाद क्या है?
चीन और भारत के बीच मैकमोहन रेखा को अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा माना जाता है लेकिन चीन इसे ख़ारिज करता है। चीन का कहना है कि तिब्बत का बड़ा हिस्सा भारत के पास है। 1950 के दशक के आख़िर में तिब्बत को अपने में मिलाने के बाद चीन ने अक्साई चीन के क़रीब 38 हज़ार वर्ग किलोमीटर इलाक़ों को अपने अधिकार में कर लिया था। ये इलाक़े लद्दाख से जुड़े थे। चीन ने यहां नेशनल हाइवे 219 बनाया जो उसके पूर्वी प्रांत शिन्जियांग को जोड़ता है। भारत इसे अवैध क़ब्ज़ा मानता है।
लेकिन इस विवाद जो चीन कहता है उसको समझने से पहले हमें अरुणाचल का इतिहास समझना होगा तो जुड़े रहिये हमारे साथ वीडियो के आखिरी तक
अगर अरुणाचल के इतिहास की बात की जाये तो इसके प्राचीन इतिहास को लेकर बहुत स्पष्टता नहीं है। अरुणाचल, असम के पड़ोस में है और यहां कई प्राचीन मंदिर हैं। यहां तिब्बत, बर्मा और भूटानी संस्कृति का भी प्रभाव है। 16वीं सदी में तवांग में बना बौद्ध मंदिर इसकी ख़ास पहचान है।
तिब्बत के बौद्धों के लिए यह काफ़ी पवित्र स्थान है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में भारतीय शासकों और तिब्बती शासकों ने तिब्बत और और अरुणाचल के बीच कोई निश्चित सीमा का निर्धारण नहीं किया था। लेकिन राष्ट्र-राज्य की अवधारणा आने के बाद सरहदों की बात होने लगी।
सन 1912 तक तिब्बत और भारत के बीच कोई स्पष्ट सीमा रेखा नहीं खींची गई थी। इन इलाक़ों पर न तो मुग़लों का और न ही अंग्रेज़ों का नियंत्रण था। भारत और तिब्बत के लोग भी किसी स्पष्ट सीमा रेखा को लेकर निश्चित नहीं थे। ब्रितानी शासकों ने भी इसकी कोई जहमत नहीं उठाई। तवांग में जब बौद्ध मंदिर मिला तो सीमा रेखा का आकलन शुरू हुआ। 1914 में शिमला में तिब्बत, चीन और ब्रिटिश भारत के प्रतिनिधियों की बैठक हुई और सीमा रेखा का निर्धारण हुआ।
1914 में तिब्बत एक स्वतंत्र लेकिन कमज़ोर मुल्क था। ग़ुलाम भारत के ब्रिटिश शासकों ने तवांग और दक्षिणी हिस्से को भारत का हिस्सा माना और इसे तिब्बतियों ने भी स्वीकार किया। इसे लेकर चीन नाराज़ था। चीनी प्रतिनिधियों ने इसे मानने से इनकार कर दिया और वो बैठक से निकल गए। 1935 के बाद से यह पूरा इलाक़ा भारत के मानचित्र में आ गया।
चीन ने तिब्बत को कभी स्वतंत्र मुल्क नहीं माना। उसने 1914 के शिमला समझौते में भी ऐसा नहीं माना था। 1950 में चीन ने तिब्बत को पूरी तरह से अपने क़ब्ज़े में ले लिया। चीन चाहता था कि तवांग उसका हिस्सा रहे जो कि तिब्बती बौद्धों के लिए काफ़ी अहम है।
चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत बताता है। भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर कई बैठकें हो चुकी हैं लेकिन आज तक मुद्दा सुलझ नहीं पाया। दोनों देशों के बीच 3,500 किमोलीटर (2,174 मील) लंबी सीमा है। सीमा विवाद के कारण दोनों देश 1962 में युद्ध के मैदान में भी आमने-सामने खड़े हो चुके हैं, लेकिन अभी भी सीमा पर मौजूद कुछ इलाकों को लेकर विवाद है जो कभी-कभी तनाव की वजह बनता है।
1962 में चीन और भारत के बीच युद्ध हुआ। अरुणाचल को लेकर भौगोलिक स्थिति पूरी तरह से भारत के पक्ष में है इसलिए चीन 1962 में युद्ध जीतकर भी तवांग से पीछे हट गया। इसके बाद से भारत ने पूरे इलाक़े पर अपना नियंत्रण मज़बूत कर लिया।