सूक्ष्मजीवों (Microbes) का पृथ्वी के जीवन (Life on Earth) के लिए बहुत महत्व है. यह जीवन के बाकी प्रारूपों के लिए बहुत अहमित रखते हैं. चाहे इंसान को लंबी अंतरिक्ष यात्रा कर दूसरे ग्रहों पर जाना या फिर किसी बीमारी से लड़ने के लिए अपना प्रतिरोध तंत्र बढ़ाना हो, सूक्ष्मजीवन इंसानों के लिए आज भी उतने ही अहम हैं जितने पहले कभी थी. सूक्ष्म जीवों के संसार के बारे में हालिया अध्ययन कहता है कि सूक्ष्मजीवों को स्तर पर जैवविविधता (Biodiversity) किस दिशा में जा रही है यह अज्ञात है.
Microbes
अजीब बात है कि जब दुनिया में सदियों से जैवविविधता (Biodiversity) पर अध्ययन हो रहे हैं और पिछले कुछ दशकों में जैवविविधता पर खतरा एक बड़ी पर्यावरणीय चुनौती सामने बन कर आ रही है ऐसे में यह कहना कि वायरस (Virus), बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्मजीव (Microbes) विविधता के स्तर पर किस दिशा में जा रहे हैं यह पता नहीं चल पा रहा है.
सूक्ष्मजीवों (Microbes) को इंसान, पशुओं और पेड़ पौधों की कई प्रक्रियाओं में भूमिका रहती है. यहां तक कि इनकी विविधता (Diversity) पेड़ पौधों और जानवरों से भी अधिक पाई जाती है, लेकिन जीवन की उद्भव (Evolution of life) और विकास प्रक्रिया में सूक्ष्मजीवों में किस तरह के बदलाव आ रहे हैं या बिलकुल भी नहीं आ रही है, यह पूरी तरह से अज्ञात है.
यह अधय्यन हाल ही फ्रंटियर्सइंन डॉटओआरजी में प्रकाशित हुआ है. इस शोध में रॉकफेलर यूनिवर्सिटी के प्रोग्राम फॉर ह्यूमन एनवायर्नमेंट में मेहमान अन्वेषणकर्ता डेविस एस थालेर जहां पौधों और जानवरों के विविधता (Diversity) कम होने पर बहुत सारा दस्तावेजीकरण हुआ है, सूक्ष्मजीवन (Microbes) के बारे में इस तरह का कोई अध्ययन नहीं हुआ है और यह पूरी तरह से अज्ञात है. उन्होंने अपने शोधपत्र में सभी से यह सवाल पूछा है कि क्या वायरस (Virus) सहित सूक्ष्मजीवन भी बदल रहा है और अगर हां तो किस दिशा में और कितनी तेजी से.
थालेर स्विट्जरलैंड की बासेल यूनिवर्सिटी में काम करते हैं उनका कहना है कि उन्होंने अपने अध्ययन के जरिए यह पाया है कि पृथ्वी (Earth) पर कुछ प्रजातियां (Species) हाल ही में विलुप्त (Extinct) हो गई हैं और बहुत सी कम संख्या में ही बची हैं. अनुमान है कि कुछ ही दशकों में एक लाख प्रजातियों के विलुप्त हो जाएंगी.
थालेर का कहना है कि उनका शोधपत्र समस्या के समाधान के लिए कोई रास्ता तो नहीं सुझा रहे हैं, बल्कि वे एक बहुत ही अहम सवाल का खाका खींचने का प्रयास कर रहे हैं जिस पर शोध के लिहाज से काफी प्रगति हो सकती है. थालेर ने मिसाल देते हुए बताया कि सूक्ष्मजीव (Microbes) भी विलुप्त (Extinct) हो सकते हैं इसमें चेचक वायरस (Virus) सबसे बढ़िया उदाहरण है.
यदि सूक्ष्मजीवों (Microbes) की विविधता (Diversity) के कुछ या सभी हिस्सा बढ़ रहे हैं तो हम उस रफ्तार को पकड़ने में काफी धीमे हैं. थालेर ने हाल ही में तेजी से म्यूटेट हो रहे सार्सकोव-2 (SARS CoV-2) की ओर इशारा करते कहा कि हम सूक्ष्मजीवन की विविधता के बारे में बहुत कम जानते हैं. दूसरे शब्दों में हम नहीं जानते हैं कि यह बढ़ रही है, घट रही है या फिर एक समान कायम है.
अपने शोधपत्र में थालेर ने उन पद्धतियों की रूपरेखा के बारे बताया जो सूक्ष्मजीवों (Microbes) की विविधता (Diversity) को समझने में बेहतर तरह से मदद कर सकते हैं. उनके मुताबिक सिंगल मॉलीक्यूल या सिंगल सेल सीक्वेंसिंग जैसी डीएनए तकनीकें (DNA Technologies) सूक्ष्मजीवन केउद्भव की गति को समझने मे सहायक हो सकती हैं. जैसे जैसे मानवता की सूक्ष्मजीवों पर भूमिका बढ़ती जा रही है यह समझना बहुत जरूरी है.