ratan tata vs henry ford: जब फोर्ड ने रतन टाटा को औकात दिखाने की कोशिश की

By | September 11, 2021
ratan tata vs henry ford

ratan tata vs henry ford: फोर्ड ने रतन टाटा को औकात दिखाने की कोशिश की, टाटा मोटर्स ने ऐसे रौंदा कि ताले लग गए

ratan tata vs henry ford: ये कॉरपोरेट दुश्मनी नहीं थी। मूंछ और बिजनस स्किल की लड़ाई थी। फोर्ड मोटर्स और टाटा मोटर्स के बीच जो हुआ उसे दुनिया भर के बिजनस स्कूल्स में पढ़ाया जाता है। फोर्ड मोटर्स इंडिया ने अपने प्लांट पर ताला लगाने का ऐलान किया है लेकिन इसकी नींव 1999 में पड़ गई थी। ratan tata vs henry ford

फोर्ड मोटर्स ने भारत की दोनों मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स में ताला लगाने का फैसला किया है। साणंद और चेन्नई यूनिट में काम कर रहे 4000 लोगों के चेहरे उदास हैं। दो अरब डॉलर के घाटे से कंपनी की कमर टूट गई है। कोई भी कंपनी ऐसा दिन नहीं देखना चाहती। लेकिन इस घमंडी अमेरिकी कंपनी की हालत इतनी जल्दी इतनी नाजुक हो जाएगी, किसे पता था। हां एक शख्स है . रतन टाटा जिसे फोर्ड ने कभी अपने हेडक्वार्टर में बेइज्जत करने की कोशिश की थी। तो पढ़िए वो पूरा वााकया..

1991 में रतन टाटा ग्रुप के चेयरमैन बने। तब टाटा मोटर्स की पहचान ट्रक बनाने की सबसे बड़ी कंपनी के तौर पर होती थी। 1998 में टाटा मोटर्स ने कार बनाने का फैसला किया। साल के आखिर में टाटा इंडिका लॉंच हो गई। ये पहली मॉडर्न कार थी जिसे किसी भारतीय कंपनी ने डिजाइन किया। वो दिन-रात काम करने लगे। जब कार मार्केट में लॉंच हुई तो उम्मीदें बहुत थीं। पर रतन टाटा का सपना टूटने लगा।

दिल्ली – मुंबई की सड़कों पर बारिश के बीच अगर कोई कार सबसे ज्यादा ब्रेकडाउन हुई तो वो इंडिका थी। 1999 में टाटा ग्रुप ने कार कारोबार समेटने की तैयारी कर ली थी। रतन टाटा निराश थे। सॉल्ट टू स्टील कंपनी का तमगा लेकर घूम रहे रतन टाटा के लिए ये एक बड़ा झटका था।

फोर्ड मोटर्स ने बोली लगाई। उन्होंने टाटा को संदेशा भिजवाया। ऑटो मैन्युफैक्चरिंग के लिए मशहूर डेट्रायट मिशिगन झील के दक्षिण-पूर्व में अमेरिकी इंडस्ट्री का नगीना माना जाता है। यहीं फोर्ड का मुख्यालय है। रतन टाटा और उनकी टीम भारी मन से डेट्रायट पहुंची। लगभग तीन घंटे चली बातचीत में रतन टाटा को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी।

बिल फोर्ड ने रतन टाटा की बेइज्जती की

फोर्ड मोटर्स के चेयरमैन बिल फोर्ड ने भारत की सबसे बड़ी औद्योगिक हस्ती को औकात दिखाने की कोशिश की। बिल फोर्ड ने रतन टाटा से कहा कि जब पैसेंजर कार बनाने का कोई अनुभव नहीं था तो ये बचकाना हरकत क्यों की। हम आपका कार बिजनस खरीद कर आप पर उपकार ही करेंगे। रतन टाटा बुरी तरह हिल गए। उसी रात उन्होंने कार बिजनस बेचने का फैसला टाल दिया। अगली ही फ्लाइट से वो अपनी टीम के साथ मुंबई लौटे।

रतन टाटा ने अब ठान ली थी। इरादे बुलंद थे। लक्ष्य एक। फोर्ड को सबक सिखाना है। लेकिन चैलेंज बहुत बड़ा था। एक ऐसी ग्लोबल कंपनी जिसका पूरी दुनिया में रुतबा था। कार सेगमेंट की किंग कंपनी फोर्ड मोटर्स।

2008 में टाटा मोटर्स के पास बेस्ट सेलिंग कार्स की एक लंबी लाइन थी। कंपनी पूरी दुनिया पर छाने को बेताब थी। उधर फोर्ड मोटर्स की हालत खराब होती जा रही थी। कार बेचकर मुनाफा कमाना मुश्किल हो रहा था। 2008 में रतन टाटा ने पासा पलटा और बिल फोर्ड को औकात दिखा दी।

टाटा मोटर्स ने फोर्ड की लैंड रोवर और जगुआर ब्रांड को खरीदने का ऑफर दे दिया। तब ये दोनों कारों की बिक्री बेहद खराब थी। फोर्ड को काफी घाटा हो रहा था। फोर्ड की टीम मुंबई आई। बिल फोर्ड को कहना पड़ा – आप हमें बड़ा फेवर कर रहे हैं। अगर चाहते तो रतन टाटा इन दोनों ब्रांड्स को बंद कर सकते थे। लेकिन रतन टाटा ने ऐसा नहीं किया। जब लंदन की फैक्ट्री बंद होने की अफवाह उड़ी तो रतन टाटा ने कामगारों की भावना समझी। यूनिट को पहले की तरह काम करने की आजादी दी।

आज लैंड रोवर और जगुआर दुनिया की बेस्ट सेलिंग कार ब्रांड्स में शुमार है। टाटा मोटर्स दुनिया की बड़ी कार कंपनी है और रतन टाटा सबसे सम्मानित उद्योगपतियों में से एक हैं। एक ऐसा शख्स जिसे बिल फोर्ड की तरह गुरूर नहीं है। टाटा ग्रुप अपने मुनाफे का 66 परसेंट चैरिटी पर खर्च करती है।

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