By | September 11, 2021
jack ma

चीन के उद्योगपति जैक मा के लिए सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा था. उनकी कंपनी ‘अलीबाबा’ की वित्तीय यूनिट ‘ग्रुपो हॉरमिगा’ की नवंबर, 2020 में हांगकांग और शंघाई के शेयर बाज़ार में लिस्टिंग होनी थी.

‘ग्रुपो हॉरमिगा’ की कीमत 34.4 अरब डॉलर के करीब आंकी गई थी. इसे अलीबाबा के इतिहास में मील का पत्थर साबित होने वाली लिस्टिंग बताया जा रहा था. लेकिन आख़िरी कुछ मिनटों में चीज़ें बदल गईं.

चीन के वित्तीय नियामकों ने बाज़ार में ‘प्रतिस्पर्धा से जुड़ी चिंताओं’ का हवाला देते हुए लिस्टिंग की प्रक्रिया पर रोक लगा दी. इतना ही नहीं इस लिस्टिंग को सेलीब्रेट किए जाने वाले कार्यक्रम में बिजली की आपूर्ति रोक दी गई.

म्यूज़िक बंद कर दिया गया और इवेंट के मेहमानों को घर जाने के लिए कहा गया. इसके बाद सरकार ने अलीबाबा को कंपनी के पुनर्गठन के लिए कहा. जैक मा जो कभी चीन की कामयाबी का प्रतीक हुआ करते थे, वे महीनों के लिए आम लोगों की नज़रों से दूर हो गए.

इस अप्रत्याशित फ़ैसले का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव देखा गया. लेकिन तब कम ही लोगों को इसका अंदाज़ा था कि अलीबाबा के साथ जो कुछ हुआ, वो चीन की बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों के ख़िलाफ़ शी जिनपिंग सरकार की कार्रवाई की शुरुआत भर है.

राष्ट्रपति शी जिनपिंग का फ़ैसला

आधिकारिक मीडिया रिपोर्टों के अनुसार चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की एक मीटिंग के दौरान राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने देश की टेक्नोलॉजी कंपनियों पर कड़े नियंत्रण के अपने फ़ैसले का बचाव किया है.

शी जिनपिंग ने टेक्नोलॉजी कंपनियों के ख़िलाफ़ की जा रही कार्रवाई का ये कहते हुए बचाव किया है कि उनका मक़सद ‘ग़ैर-वाजिब पूंजी विस्तार को रोकना’ और ‘बेहिसाब तरक्की’ से निपटना है.

उन्होंने स्पष्ट चेतावनी देते हुए कहा कि वे इन कंपनियों के ख़िलाफ़ चल रही मुहिम को दोगुना तेज़ कर देंगे. शी जिनपिंग का कहना है कि समाजवादी बाज़ार अर्थव्यवस्था में सुधार लाने और आम लोगों की ज़िंदगी बेहतर बनाने के लिए ये कार्रवाई ज़रूरी है.

‘आम लोगों की समृद्धि’ का नारा शी जिनपिंग की सरकार का नया मंत्र है. उसका कहना है कि संसाधनों के पुनर्वितरण और कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए ये ज़रूरी हो गया था.

‘ग्रुपो हॉरमिगा’ के आईपीओ पर रोक लगाने के बाद सरकार ने अन्य टेक्नोलॉजी कंपनियों पर भी कई पाबंदियां लगाई हैं. ये कंपनियां ई-कॉमर्स, ट्रांसपोर्टेशन, फिनटेक, वीडियो गेम्स और ऑनलाइन एजुकेशन बिज़नेस से जुड़ी हुई हैं.

सबसे बड़ा जुर्माना

उद्योगपति जैक मा के आर्थिक साम्राज्य की अहम ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा पर इस अप्रैल में 2.8 अरब डॉलर का जुर्माना लगाया गया. देश के आर्थिक इतिहास में ये किसी कंपनी पर लगाया गया अब तक का सबसे बड़ा जुर्माना था.

जुर्माने की वजह ये बताई गई कि कंपनी ने बाज़ार में अपनी प्रभावशाली स्थिति का दुरुपयोग किया है.

सरकार की नई पाबंदियों की जद में जो कंपनियां आई हैं, इनमें प्रमुख हैं- टेंसेंट (इंटरनेट कंपनी), मेइतुआन (फूड डिलेवरी), पिंड्युओड्युओ (ई-कॉमर्स), दीदी (ऐप आधारित कैब सर्विस), फुल ट्रक एलायंस, कांझुम (रिक्रूटमेंट), न्यू ओरियंटल एजुकेशन (ऑनलाइन एजुकेशन).

अलीबाबा, दीदी और मेइतुआन ने अलग-अलग बयान जारी करके कहा है कि वे सरकार के फ़ैसले के साथ सहयोग करेंगे.

इस सिलसिले में ताज़ा मामला इलेक्ट्रिक कार बनाने वाली कंपनी बीवाईडी का है. कंपनी की योजना अपनी चिप मेकिंग यूनिट में हिस्सेदारी बेचनी की थी लेकिन ‘सरकारी जांच’ की वजह से इस प्रक्रिया को बीच में ही रोकना पड़ा.

कंपनियों पर कंट्रोल की कोशिश

टेक्नोलॉजी कंपनियों के ख़िलाफ़ चल रही सरकारी मुहिम पर शी जिनपिंग की सरकार का कहना है कि ये सभी मामले एक दूसरे से अलग हैं. कंपनियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के सरकारी फ़ैसलों को वाजिब ठहराने के लिए जिन दलीलों का सहारा लिया गया है, उनमें प्रमुख हैं ‘एकाधिकार को रोकना’ और ‘यूजर डेटा का संरक्षण’.

इस सिलसिले में हाल ही में एक क़ानून भी पारित किया गया है. जिसके तहत संवेदनशील पर्सनल डेटा को अवैध तरीके से हासिल करने पर कंपनी के कामकाज को निलंबित किया जा सकता है या फिर उसे रद्द भी किया जा सकता है.

टेक्नोलॉजी कंपनियों के ‘शिकार’ के इस अभियान में डेटा सिक्योरिटी की समीक्षा की जा रही है और कंपनियों पर कंट्रोल के लिए ‘बेहिसाब पूंजी विस्तार’ की दलील का सहारा लिया जा रहा है.

पिछले साल दिसंबर में सरकार ने इस जुमले को उछाला था जिसका मतलब ये निकाला जा रहा है कि ‘जनहित की कीमत पर कंपनियों को तरक्की नहीं करने दिया जाएगा.’

कई विश्लेषक इस सरकारी मुहिम को कंपनियों को कंट्रोल करने की कोशिश के तौर पर देख रहे हैं.

सरकार का नज़रिया

सिंगापुर के एक बिज़नेस स्कूल में इंटरनेशनल बिज़नेस के प्रोफ़ेसर माइकल विट कहते हैं, “चीनी कम्युनिस्ट पार्टी टेक्नोलॉजी सेक्टर के ग्रोथ पर ब्रेक लगाना चाहती है. इस सेक्टर से ऐसे संकेत मिल रहे थे कि मानो वो ये भूल गई है कि कमान किसके हाथ में है.”

“जैक मा के साथ यही हुआ था. उन्होंने सरकार की आलोचना की जिसके बाद उनकी कंपनी से जुड़ी आईपीओ को रोकने का फ़ैसला किया गया. दीदी के साथ भी यही हुआ. उसने सरकारी गाइडलाइंस का पालन नहीं किया था.”

“सरकार का नज़रिया ये था कि इन कंपनियों को बिना सज़ा दिए छोड़ा नहीं जा सकता है. इन मामले की जड़ इस बात में है कि चीन में जो कुछ भी चल रहा है या जो हो रहा है, उसकी कमान किसके हाथ में है.”

अमेरिकी थिंकटैंक पीटर्सन इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स के रिसर्चर मार्टिन चोर्ज़ेंपा कहते हैं कि कंट्रोल स्थापित करने के अलावा सरकार कुछ और भी हासिल करना चाहती है. और इसके कुछ वाजिब कारण भी हो सकते हैं.

मार्टिन चोर्ज़ेंपा कहते हैं, “आम लोगों की प्राइवेसी से जुड़े डेटा का बेहतर संरक्षण और दुनिया भर के समाजों में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बढ़ने से जो नुक़सान हो रहे हैं, उसे रोकना वाजिब वजह हो सकती है.”

‘टेक्नोलॉजिकल सुपरमेसी’

मार्टिन चोर्ज़ेंपा कहते हैं, “लेकिन अगर हम डेटा के राष्ट्रीयकरण की बात कर रहे हैं. कंपनियों पर कड़े क़ायदे क़ानून लागू करने की बात कह रहे हैं जिसमें प्राइवेट कंपनियों के फलने-फूलने की कम गुंजाइश हो तो ये ज़्यादा बड़ी समस्या लगती है.”

यूनिवर्सिटी ऑफ़ हांगकांग में चाइनीज़ लॉ सेंटर की निदेशक एंगेला झांग इस बात को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समझाने की कोशिश करती हैं. उनका कहना है कि चीन में टेक्नोलॉजी सेक्टर में लंबे समय से नियमन से जुड़ी चिंताएं थीं और सरकारी पाबंदियां इसके निपटारे के लिए ही लाई गई हैं.

वो कहती हैं, “चीनी टेक्नोलॉजी कंपनियां अब तक बड़े लचीले माहौल में काम करती आई थीं लेकिन अब इन कंपनियों के लिए क़ायदे क़ानून तय किए जा रहे हैं.”

उनका कहना है कि अमेरिका और यूरोपीय संघ के देश भी टेक्नोलॉजी सेक्टर पर इसी तरह से अपना नियंत्रण बढ़ा रहे हैं.

लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स के विशेषज्ञ केयु जिन दलील देते हैं कि चीन का मक़सद ‘टेक्नोलॉजिकल सुपरमेसी’ स्थापित करना है ताकि वो प्रमुख क्षेत्रों में ग्लोबल स्टैंडर्ड स्थापित कर सके. इससे अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर उसका प्रभाव बढ़ेगा.

विदेशी कंपनियों की पहुंच

सरकार की दिलचस्पी उपभोक्ताओं को सर्विस देने वाली ई-कॉमर्स या टेक्नोलॉजी कंपनियों के बजाय रणनीतिक लिहाज़ से ज़्यादा अहम माने जाने वाले क्षेत्रों जैसे क्वांटम कंप्यूटर्स, सेमीकंडक्टर और सैटेलाइट सेक्टर के विकास में ज़्यादा दिख रही है.

कुछ विश्लेषकों का ये भी मानना है कि सरकार चीनी कंपनियों में विदेशी कंपनियों की पहुंच को सीमित करना चाहती है.

कंसल्टेंसी फर्म मार्कम बर्नस्टीन एंड पिनचक (एमबीपी) के को-चेयरमैन ड्रूय बर्नस्टीन की दलील है कि चीन में जो बदलाव हो रहे हैं, उससे ऐसा लगता है कि वो टेक्नोलॉजी की नकल करने वाले कॉपीकैट के बजाय इस सेक्टर में खुद को टाइगर की तरह पेश करना चाहता है.

सरकार की दिलचस्पी उपभोक्ताओं को सर्विस देने वाली ई-कॉमर्स या टेक्नोलॉजी कंपनियों के बजाय रणनीतिक लिहाज़ से ज़्यादा अहम माने जाने वाले क्षेत्रों जैसे क्वांटम कंप्यूटर्स, सेमीकंडक्टर और सैटेलाइट सेक्टर के विकास में ज़्यादा दिख रही है.

इसके अलावा साल 2025 के लिए सरकार की योजना भी एक मुद्दा है. ये कहा जा रहा है कि चीन की सरकार अपनी अर्थव्यवस्था के बड़े हिस्से को कड़ाई से क़ायदे-क़ानून लागू करना चाहती है.

सिंगापुर में बीबीसी के बिज़नेस संवाददाता पीटर हॉस्किंस कहते हैं कि नए नियम-क़ानूनों का दायरा टेक्नोलॉजी सेक्टर से बड़ा होने जा रहा है. इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यापारिक एकाधिकार के पहलू भी शामिल होंगे.

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