By | December 1, 2021
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dark side of social media hindi: सोशल मीडिया क्या वाकई आपको बीमार बना रहा है, जानिए हकीकत | dark side of social media hindi

dark side of social media hindi: सोशल मीडिया क्या वाकई आपको बीमार बना रहा है, जानिए हकीकत | dark side of social media hindi

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dark side of social media hindi: सोशल मीडिया क्या वाकई आपको बीमार बना रहा है, जानिए हकीकत | dark side of social media hindi

सोशल मीडिया आज के दौर में बेहद ताकतवर माध्यम बन गया है।लोग खुलकर इजहार-ए-ख्याल कर रहे हैं।

दुनिया को बता रहे हैं कि वो क्या कर रहे हैं, कब कहां हैं।किस चीज का लुत्फ उठा रहे हैं।किस बात से उन्हें परेशानी हो रही है।

मगर सोशल मीडिया के हद से ज़्यादा इस्तेमाल से मुश्किलें भी खड़ी होने लगी हैं।चूंकि ये संवाद का नया माध्यम है, इसलिए इस बारे मे ठोस रिसर्च कम है और हौव्वा ज़्यादा।आज लोग सोशल मीडिया की लत पड़ने की बातें करते हैं।

क्या होता है सोशल मीडिया के ज़्यादा इस्तेमाल से? dark side of social media hindi

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सवाल ये है कि सोशल मीडिया पर कितना वक़्त बिताना ठीक है? और किस हद के पार जाना इसकी लत पड़ने में शुमार होता है? यूं तो सोशल मीडिया की लत को लेकर कुछ रिसर्च होनी शुरु हुई हैं, मगर अभी इनसे भी किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका है।

 

हां, अब तक सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर जो तजुर्बे हुए हैं, उनसे एक बात तो सामने साफ तौर पर आई है। वो ये कि बहुत ज़्यादा सोशल मीडिया इस्तेमाल करने वाले दिमागी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।

डिप्रेशन और नींद न आने की समस्या से जूझ रहे हैं। किसी चीज की लत पड़ना सिर्फ उसमें जरूरत से ज़्यादा दिलचस्पी को नहीं दर्शाती है बल्कि लत पड़ने का मतलब ये है कि लोग उस चीज पर अपनी मानसिक और जज़्बाती जरूरतों के लिए भी निर्भर हो गए हैं। वो अपनी असली दुनिया के रिश्तों की अनदेखी करने लगते हैं।

फिर काम और बाकी जिंदगी के बीच जो तालमेल होना चाहिए, वो भी गड़बड़ाने लगता है। ये ठीक उसी तरह है जैसे लोगों को शराब या ड्रग्स की लत लग जाती है। जरा सी परेशानी हुई नहीं कि शराब के आगोश में चले गए, या सिगरेट जला ली।

नींद की समस्या बढ़ती है | dark side of social media hindi

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बीबीसी ने एक मोटे तजुर्बे से पाया है कि अगर कोई शख़्स दो घंटे या इससे ज़्यादा वक़्त सोशल मीडिया पर गुजारता है, तो आगे चलकर वो डिप्रेशन का शिकार हो जाता है, जज़्बाती तौर पर अकेलापन महसूस करता है। सोशल मीडिया पर हमेशा डटे रहने की वजह से हमारी सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है।

देर रात तक ट्विटर या फेसबुक देखते रहने से हमारी नींद पर बहुत बुरा असर पड़ता है। मोबाइल या कंप्यूटर की स्क्रीन से निकलने वाली नीली रौशनी हमारे शरीर की बॉडी क्लॉक को कंट्रोल करने वाले हारमोन मेलाटोनिन का रिसाव रोकती है।

मेलाटोनिन हमें नींद आने का एहसास कराता है। मगर इसका रिसाव रुक जाने की वजह से हम देर तक जागते रहते हैं। नींद ठीक से नहीं ली, तो यकीनन दूसरी परेशानियां होने लगती हैं। लंदन के सेंट थॉमस हॉस्पिटल के डॉक्टर चार्ल्स टियक कहते हैं कि अगर बेडरूम में मोबाइल या लैपटॉप है, तो आम तौर पर लोग उसका इस्तेमाल करते हैं।

 

नतीजा ये होता है कि वो अपनी नींद से समझौता करते हैं। इससे खास तौर से युवाओं को नई चीजें सीखने में मुश्किलें आती हैं।

कौन करते हैं सोशल मीडिया का ज़्यादा इस्तेमाल? | dark side of social media hindi

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एक रिसर्च के मुताबिक, ज़्यादातर युवा, महिलाएं या अकेले लोग ही सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं। सोशल मीडिया के ज़्यादा इस्तेमाल की वजहें कम तालीम, कम आमदनी और खुद पर भरोसे की कमी होना भी होती हैं। आत्ममुग्ध लोग भी सोशल मीडिया का बहुत इस्तेमाल करते हैं।

लोग सोशल मीडिया पर जाते हैं ताकि अपना खराब मूड ठीक कर सकें। मगर, रिसर्च बताती हैं कि सोशल मीडिया पर जाकर भी इससे आपको राहत नहीं मिलती। लंदन के मनोवैज्ञानिक डॉक्टर जॉन गोल्डिन कहते हैं कि वर्चुअल दुनिया में वो लोग दोस्त बनाने जाते हैं, जो असल जिंदगी में बहुत अकेले होते हैं।

वर्चुअल दोस्त काम के हो सकते हैं। मगर ये असली दोस्तों के विकल्प नहीं हो सकते इसलिए डॉक्टर गोल्डिन सलाह देते हैं कि लोगों को घर से बाहर निकलकर, असल दुनिया में लोगों से मिलना और बात करनी चाहिए।

डिप्रेशन की वजह बना सोशल मीडिया | dark side of social media hindi

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पूर्वी यूरोपीय देश हंगरी में सोशल मीडिया एडिक्शन स्केल नाम का पैमाना इजाद किया गया है। इसके जरिए पता लगाते हैं कि किसे सोशल मीडिया की कितनी लत है। इस स्केल की मदद से पता चला कि हंगरी के 4.5 फीसद लोगों को सोशल मीडिया की लत पड़ गई है।

ऐसे लोगों के अंदर खुद पर भरोसे की कमी साफ दिखी। वो डिप्रेशन के भी शिकार हो चुके हैं। इन लोगों को सलाह दी गई कि वो स्कूल-कॉलेज में सोशल मीडिया डिएडिक्सन क्लास में जाएं और खुद का इलाज कराएं। हंगरी में हुई ये रिसर्च हमें आगाह करने के लिए काफी है। सोशल मीडिया का सही इस्तेमाल करने की सलाहियत सभी लोगों में नहीं होती।

हमें इसके इस्तेमाल को लेकर खुद पर कुछ बंदिशें आयद करनी होंगी। वरना हम में से कई लोगों के हंगरी के उन 4.5 फीसद लोगों में शामिल होने का डर है, जो सोशल मीडिया की लत के शिकार हैं, बीमार हैं। सोशल मीडिया का जरूरत से ज़्यादा इस्तेमाल हमें बीमार, बहुत बीमार बना सकता है।

 

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